(43) रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन।।
भावार्थ - शत्रु, रोग, अग्नि,पाप को छोटा नहीं समझना चहिये ऐसा कहकर शूर्पणखा अनेक प्रकार से विलाप कर रोने लगी इसका तात्पर्य है कि शत्रु अर्थात दुश्मन कितना भी छोटा क्यों न हो उससे सावधान रहना चाहिए । इसी प्रकार रोग अर्थात छोटी से छोटी बीमारी को भी कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सर्दी, जुकाम या बुखार आदि भले ही साधारण लगते हो, लेकिन जब यह बढ़ जाते हैं तो शरीर को खोखला कर देते हैं। कई बार ये बड़ी बीमारी जैसे कोरोना भी हो सकता है जिसका वर्तमान में कोई इलाज नहीं है एवं जिससे विश्व के कई देश इस महामारी से व्यथित होकर लोक डाउन के सहारे इस महामारी से लड़ने की कौशिस कर रहे है । इस वायरस के कारण विश्व में लगभग साठ हजार लोग काल ग्रसित हो गए हैं । इसी प्रकार पावक अर्थात अग्नि की छोटी चिंगारी भी विकराल रूप धारण कर लेती है इस रार नियंत्रण पाना मुश्किल हो जाता है । अब अंत में आता है पाप, जो कि हमारे दृष्टिकोण में छोटा दिखाई देता है परन्तु वही पाप ना जाने कब हमारे लिए इतनी विपत्तिया लेकर आ सकता है जिससे हमारा जीवन ही बेकार हो जाता है, अतः पाप से बचना चाहिए ।
मुझे आशा है आप सभी गोस्वामी तुलसी दास जी के इस दोहे पर विचार कर अपना जीवन सुखमय बना सकेंगे।
जय श्री राम
आपका
पं. प्रताप भानु शर्मा