शनिवार, 10 नवंबर 2018


   (३८) तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह.















      आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|  







    तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||

अर्थ: जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो,  वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो|

        इसका तात्पर्य है कि जिस स्थान पर हमारे जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हैं अर्थात हमारी उपेक्षा की जाती है । ऐसे स्थान पर हमें भूलकर भी नहीं जाना चाहिए चाहे उस स्थान पर जाने से कित ना ही लाभ क्यों न हो रहा हो । ऐसी जगह हमारा अनादर हो सकता है जिससे हमारा नुकसान हो सकता है।


जीने की कला- इस दोहे के माध्यम से हमें सीखने को मिलता है कि हमें किस जगह जाना चाहिए उसका विचार पूर्व में करने के उपरान्त  ही जाना उचित है ।अन्यथा इससे हमें हानि हो सकती है ।      
                          

                                                  जय राम जी की

रविवार, 4 नवंबर 2018



(३७) तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|







तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|
इसका तात्पर्य है कि हमें ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए, विश्वास मजबूत होना चाहिए जो किसी भी परिस्थिति में डगमगाना नहीं चाहिए।  यदि हमारा विश्वास अटल है तब हमें किसी भी प्रकार का भय एवं चिंता से ग्रस्त नहीं होना चाहिए । चिंता से भय उत्पन्न होता है जिससे व्यक्ति निराश हो जाता है । जो कि व्यक्ति के तन मन धन तीनों के लिए हानिकारक है ।
जीने की कला- इस चौपाई के माध्यम से हमें सीखने को मिलता है कि परम पिता परमात्मा पर विश्वास रखते हुए निर्भय रहकर चिंताओं का परित्याग करना चाहिए और अपने कार्य करते रहना चाहिए ।


                                          जय राम जी की