गुरुवार, 14 मार्च 2019

(४२ ) दुसरो की उन्नति से प्रसन्न होना चाहिए


(४२ ) दुसरो की उन्नति से प्रसन्न होना चाहिए 

   जग बहू नर सर सरि सम भाई  जे निज बाढहिं बढ़हिं जल पाई॥   सज्जन सकृत सिन्धु सम कोई  देखी पुर बिधु बाढ़ई जोई 




       जगत में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक है जो जल   पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं अर्थात अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं .  समुद्र  के समान  एक बिरला ही सज्जन होता है जो चन्द्रमा को पूर्ण देख कर उमड़ पड़ता है ... 

   इसका तात्पर्य है कि मनुष्य में ऐसी प्रवृत्ति होती है कि वे केवल अपनी ही उन्नति चाहते हैं और उन्नति प्राप्त कर स्वयं ही प्रसन्न होते हैं अर्थात प्रत्येक मनुष्य केवल स्वयं की उन्नति ही चाहता है, उसे दूसरे की उन्नति से कोई मतलब नहीं रहता।  गोस्वामी जी कहते हैं कि इस संसार में ऐसे कुछ ही बिरले सज्जन व्यक्ति होते हैं जो दूसरों की उन्नति चाहते हैं एवं दूसरों की उन्नति से प्रसन्ना होते हैं। अतः हमें इस प्रकार के कार्य करना चाहिए  कि हमारे साथ दूसरे व्यक्तियों की उन्नति भी हो उसी से हम सदैव प्रसन्नता का अनुभव करें।  
    

                                                                                                 जय राम जी की 

शुक्रवार, 8 मार्च 2019





   (41) मनि मानिक मुकुता छबि जैसी . अहि गिरी गज सर सोह  तैसी                                
          नृप किरीट तरुनी तनु पाई . लहहीं सकल संग सोभा अधिकाई ...


अर्थ मणिमानिक और मोती जैसी सुन्दर छवि है मगर सांप , पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी सोभा नहीं पाते हैं ...राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीरपर ही ये अधिक शोभा प्राप्त करते हैं ..




       तुलसी दास जी के अनुसार मणि सांप पर माणिक पर्वत पर एवं मोती हाथी पर शोभित नहीं होते जबकी इनकी शोभा राजा के मुकुट एवं नवयुवती के शरीर पर ही होती है।  अर्थात किसी भी शोभयमान बस्तु की शोभा उसके मूल स्थान पर न होकर अन्यत्र ही हो सकती है।  इसका तात्पर्य है कि हमारे सद्गुण की शोभा हमारे परिवेश के बाहर ही शोभायमान हो सकते हैं।  अतः हमें अपने गुणों को प्रकट करने के लिए उचित माध्यम एवं परिवेश की आवश्यकता है। 
                                 
                                                                     जय राम जी  की  


शनिवार, 23 फ़रवरी 2019




          

                      (४० ) बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय,  

                    बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय,                                               आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।

      तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती हैं, तो उसे हर कोई छूने लगता है।

     इसका तात्पर्य है कि मनुष्य को सदैव इस प्रकार से आहार विहार दिनचर्या अपनाना चाहिए जिससे वह तेजस्वी बना रहे।  किसी भी व्यक्ति को प्रभावित करने हेतु आपके आत्मिक तेज की आवश्यकता है जो कि ज्ञान से ही प्राप्त किया जा सकता है ।  यदि आपके आचार विचार सुन्दर हैं तो आप सदैव ओज  से भरे हुए रहेंगे और आपके चेहरे की कान्ति और ज्ञान रुपी  आत्मिक तेज  किसी को भी प्रभावित कर आपके अनुसार ही कार्य करने के लिए मजबूर कर देगा।  इसके विपरीत  जिसके आचार विचार सही नहीं होते जो सदैव  गलत सोच रखता है, इस प्रकार के तेजहीन मूर्ख अज्ञानी  व्यक्ति की आज्ञा का कोई पालन नहीं करता। 

   इससे हमें जीने की कला सीखने को मिलती है कि हमेशा बुद्धि का उपयोग करना चाहिए क्योंकि ज्ञानी व्यक्ति की बातों का ही प्रभाव पड़ता है मूर्ख व्यक्ति कितनी भी कोशिश करे उसकी बात हमेशा प्रभावहीन ही रहती है।  

                                                         जय राम जी की 
     

रविवार, 6 जनवरी 2019



             (३९)     गुरु और स्वामी की सीख अवश्य  मानिये

सहज सुहृद  गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो  पछिताइ  अघाइ उर  अवसि होइ हित  हानि ||
अर्थ: स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |
        इसका तातपर्य है कि जिस व्यक्ति  अपने स्वामी एवं गुरु के द्वारा कही गई बातों को नहीं मानता   उसे  हानि अवश्य  ही होना है  क्योंकि यह हमारे परम हितेषी होते हैं , यह सदैव ही हमारा हित चाहने वाले होते हैं।  हम यदि इनकी बात पर ध्यान देते हैं तो हम आगे आनी वाली बहुत सी समस्याओं से बच सकते हैं। 









































जीने की  कला - इससे हमें सीखने को मिलता है कि  हमें सदैव अपने गुरुजन एवं स्वामी की सीख अवश्य मानना चाहिए। इससे हमारे जीवन में अवनति नही हो सकती और हम सदैव प्रगति के पथ पर अग्रसर रह सकते हैं।