रविवार, 28 अगस्त 2022

(70)मनुष्य के रूप में राक्षस कौन है

 

पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद।

ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ।।


अर्थ

वे दूसरों से द्रोह करते हैं और पराई स्त्री, पराए धन तथा पराई निंदा में आसक्त रहते हैं। वे पामर और पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही हैं॥

इसका तात्पर्य है कि आजके सामाजिक  परिवेश में कुछ व्यक्ति इस प्रकार के देखने को मिलते हैं जो द्रोह करने में ही आनंदित होते है वह सदैव द्रोह करने का कारण ही खोजते रहते हैं । पराई स्त्री के प्रति आकर्षित रहते हैं । दूसरे के धन को प्राप्त करने की चेष्टा करते रहते है और सदैव दूसरे की निंदा में ही लगे रहते हैं इस प्रकार के अत्यधिक दुष्ट अधम व्यक्ति मनुष्य शरीर में रहते हुए भी राक्षस ही हैं 

जीवन जीने की कला= इस दोहे के माध्यम से गोस्वामी जी ने राक्षस को परिभाषित किया है इससे हमें शिक्षा मिलती है कि जिन व्यक्तियों में इस प्रकार के  दुर्गुण दिखाई देवें तो उन्हें दूर करते हुए एक अच्छा मनुष्य बनाकर उनके जीवन को सफल बनाना चाहिए । इसी में उनकी भलाई है । अच्छे मनुष्यों को इस प्रकार के व्यक्तियों को शिक्षा के माध्यम से उनके  दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए जिससे समाज सुधार हो सके ।

          जय राम जी की। 

          पंडित प्रताप भानु शर्मा 



रविवार, 21 अगस्त 2022

(69) संत के गुण



संत असंतन्हि कै असि करनी।

जिमि कुठार चंदन आचरनी॥

काटइ परसु मलय सुनु भाई।

निज गुन देइ सुगंध बसाई॥

ताते सुर सीसन्ह चढ़त,

जग बल्लभ श्रीखंड।

अनल दाहि पीटत घनहिं,

परसु बदन यह दंड॥

 अर्थ=संत और असंतों की करनी ऐसी है जैसे कुल्हाड़ी और चंदन का आचरण होता है। हे भाई! सुनो, कुल्हाड़ी चंदन को काटती है (क्योंकि उसका स्वभाव या काम ही वृक्षों को काटना है), किंतु चंदन अपने स्वभाववश अपना गुण देकर उसे (काटने वाली कुल्हाड़ी को) सुगंध से सुवासित कर देता है।

इसी गुण के कारण चंदन देवताओं के सिरों पर चढ़ता है और जगत्‌ का प्रिय हो रहा है और कुल्हाड़ी के मुख को यह दंड मिलता है कि उसको आग में जलाकर फिर घन से पीटते है।


इन चौपाइयों में गोस्वामी जी ने संत स्वभाव के व्यक्ति की तुलना चंदन से और असंत की तुलना कुल्हाड़ी से करी है जिस प्रकार असंत व्यक्ति संत व्यक्ति को परेशान करने  का प्रयास करता है तब संत स्वभाव व्यक्ति अपने स्वभाव वश  असंत को  भी महका देते हैं जबकि असंत व्यक्ति को स्वभाव अनुसार दंड मिलना निश्चित है ।

 जीने की कला= श्री राम चरित मानस की इन चौपाइयों के माध्यम से सीख मिलती है कि हमें अपने निज  संत स्वभाव में रहकर  सभी को महकाते हुए असंत को भी संत बनाने का प्रयास करना चाहिए ।

     जय राम जी की

             पंडित प्रताप भानु शर्मा


 

बुधवार, 17 अगस्त 2022

(68) दूसरों को दोष न देवें ।

नयन दोस जा कहॅ जब होइ, पीत बरन ससि कहुॅ कह सोई।

जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा, सो कह पच्छिम उपउ दिनेसा ।।

अर्थ तुलसीदासजी कहते हैं कि जब किसी के आँख में दोष होता है तो उसे चाँद पीले रंग का दिखाई देता है और जब पक्षी के राजा को दिशाओं का भ्रम हो जाता है तो उसे सूर्य पश्चिम में उदय होता हुआ दिखाई देता हैं।

 इसका तात्पर्य है कि जब किसी व्यक्ति में दोष होता है तब उसे दोष ही नजर आते हैं अर्थात जो दिखाई देता है वह होता नही है जिस प्रकार दृष्टि दोष होने पर चंद्रमा  का रंग पीला दिखाई देता है इसी प्रकार जब पक्षी राज गरूड उड़ते उड़ते दिशा से भटक जाता है तो उसे सूर्य पूर्व की जगह पश्चिम से उदय होता दिखाई देता है । अतः किसी के दोष देखना और उसे दोषी बनाना सर्वथा अनुचित होता है क्योंकि दोष हम में ही होते है जिससे हमारे सामने वाला निर्दोष होते हुए भी दोषी प्रतीत होता है ।

जीने की कला= इस दोहे के माध्यम से गोस्वामी जी हमे सीख देना चाहते हैं कि जब हम किसी के दोष देखते हैं तब वास्तव में दोष उसमे नहीं हमारी दृष्टि में ही होता है । अतः हमें किसी को दोषपूर्ण दृष्टि से नही देखना चाहिए ।

  जय राम जी की 

          पंडित प्रताप भानु शर्मा

 


सोमवार, 15 अगस्त 2022

(67)कोउ नृप होउ हमहिं का हानि

 कोउ नृप होउ हमहिं का हानि ।

चेरी छाडि अब होब की रानी ॥


अर्थ:- कोई भी राजा हो जाये-हमारी क्या हानि है ? मैं अभी दासी हूँ तो नए राजा के बनने से दासी से क्या भला रानी बन जाऊंगी !

इसका तात्पर्य है कि कुछ व्यक्तियों की सोच रहती है कि राजा कोई भी हो इससे हमें क्या अंतर पड़ता है हम जैसे हैं वैसे रहेंगे इससे हमारी जीवन शैली नही बदलने वाली है । इस प्रकार की तुच्छ मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति ही इस राष्ट्र के लिए हानि पहुंचाने के लिए उत्तरदायी हैं । राजा जैसा होता है प्रजा भी वैसी ही होती है  यथा राजा तथा प्रजा । राजा की सोच से ही हमारा राष्ट्र अकल्पनीय उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है   अतः राजा चुनते समय सावधान रहने की आवश्यकता है न कि इस प्रकार की सोच के साथ किसी को भी राज्य सौंप कर होने वाले परिणामों को देखना ।

जीने की कला = यह उस मानसिकता का परिचायक सूत्र वाक्य है जहाँ व्यक्ति को तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक आंच उस तक नहीं आ जाये । जब बात खुद पर आती है फिर विरोध करने की हिम्मत नहीं रह जाती..! अतः किसी भी कार्य में स्वयं की सहभागिता निश्चित करना आवश्यक है भले ही वह कार्य आपको प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न करे।

आजादी के ७५ वर्ष आज पूर्ण हुए हैं जिसे हम अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं । आज हम सब शपथ ग्रहण करें कि हम अपने देश के लिए ऐसे सभी कार्य करेंगे जो देश हित में हों । स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं । जय हिंद जय भारत ।

       जय राम जी की    ।

        पंडित प्रताप भानु शर्मा

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

(66)दिखावे से दूर रहना चहिए

 

तनु गुन धन महिमा धरम,।  तेहि बिनु जेहि अभियान।      तुलसी जिअत बिडंबना, परिनामहु गत जान।।




अर्थ- तन की सुंदरता, सद्गुण, धन, सम्मान और धर्म आदि के बिना भी जिन्हें अभिमान होता है, ऐसे लोगों का जीवन ही दुविधाओं से भरा होता है, जिसका परिणाम बुरा ही होता है।
 
  इसका तात्पर्य है कि आज के सामाजिक परिवेश में कुछ व्यक्ति सुंदर नहीं होते हुए भी अपने आपको सुंदर समझते हैं इसी प्रकार गुणी न होने पर गुणी,  धन न होने पर भी धनी मान न होने पर भी सम्मानित , धर्म का पालन न करने पर भी स्वयं को धार्मिक समझकर अभिमान करते हैं । गोस्वामी जी कहते हैं इस प्रकार के व्यक्तियों का जीवन सदैव समस्याओं से घिरा रहता है और अंत में उसका परिणाम कष्टप्रद रहता है ।
  
जीने की कला = वर्तमान समय में एक कहावत चलती है, कि जो दिखता है, वह बिकता है। ऐसे में तुलसीदास जी ने दिखावे के पीछे भागने वालों के लिए भी अपने इस दोहे में शिक्षा दी है कि हमको दिखावे से दूर रहकर वास्तविकता में रहना चाहिए अन्यथा हम परेशानी में पड़ सकते हैं ।

      जय राम जी की

      पंडित प्रताप भानु शर्मा        

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

(65)लोभ दुख का कारण



सुख संपति सुत सेन सहाई।      जय प्रताप बल बुद्धि बडाई।

नित नूतन सब बाढत जाई।  जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई

अर्थ