रविवार, 25 सितंबर 2022

(73)खल परिहास होइ हित मोरा।

 

खल परिहास होइ हित मोरा।

काक कहहिं कलकंठ कठोरा।। 
हंसहि बक दादुर चातकही।
हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही 

दुष्टों के हंसने से मेरा हित ही होगा मधुर कण्ठ वाली कोयल को कौए तो कठोर ही कहा करते हैं जैसे बगुले हंस पर और मेंढक पपीहे पर हँसते रहते  हैं, वैसे ही मलिन मन वाले दुष्ट निर्मल वाणी पर हँसते हैं. इस तरह दुष्टों के मुख से जो दूषण निकलेंगे वह भी संतों के भूषण हो जाएंगे.

   
 तात्पर्य है कि जब हमारे द्वारा कोई अच्छा कार्य किया जाता है तब दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति हंसी उड़ाते है क्योंकि वह नहीं चाहते कि कोई अच्छा कार्य करे जिससे उनका जमा हुआ साम्राज्य खतरे में पड़े जो  कि उन्होने केवल झूठ के सहारे से ही स्थापित किया है । दुष्टों के हंसने से संत प्रवृत्ति के व्यक्तियों का केवल हित ही होता है वह जो भी दुष्टता करते  हैं वह सज्जनता में परिवर्तित हो जाती है ।
जीने की कला= इन चौपाइयों के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि जब हमारे ऊपर कोई हंसता है हमारा मजाक उड़ाता है तब उसकी हंसी मजाक भी हमारे लिए वरदान बन जाती है जिससे हमारा कार्य निश्चित ही सफल होता है ।     
                                        जय रामजी की
               
 पण्डित प्रताप भानु शर्मा



      
          
   
               
  

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

(72)माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा का पालन ।


मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ।

लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ॥

भावार्थ:-जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ाकर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है, नहीं तो जगत में जन्म व्यर्थ ही है॥

   इसका तात्पर्य है कि जो लोग  माता, पिता, गुरु, स्वामी से प्राप्त शिक्षा को सदैव अपने स्मरण में रखते हैं एवम उसका पालन करते है, उनका ही जीवन सफल हो जाता है  जबकि ऐसा न होने पर  जीवन  व्यर्थ हो जाता है । माता पिता को प्रथम गुरु माना गया है जो कि अपनी संतान को बचपन से ही शिक्षा देकर जीवन में जीने का ज्ञान प्रदान करते है इसके बाद गुरु आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने का कार्य करते हैं  साथ ही स्वामी अर्थात आपकी अंतरात्मा जो कि सदैव सही बात ही विचार के माध्यम से प्रकट करती है जिसे हम परमात्मा की आवाज मान सकते हैं जो कि जगत के स्वामी है । अतः इनकी शिक्षा को स्वाभाविक ही मान कर पालन करना चाहिए ।

जीने की कला = गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई से सीख मिलती है कि हम सब को माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा का अवश्य ही पालन करना चाहिए इसी में हमारी भलाई है ।

    जय राम जी की  ।

           पंडित प्रताप भानु शर्मा




रविवार, 4 सितंबर 2022

(71) मूर्ख का ह्रदय

 

फूलइ फरइ न बेंत जदपि सुधा बरषहिं जलद।
मूरख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम ॥ 



भावार्थ

यद्यपि बादल अमृत जैसा जल बरसाते हैं तो भी बेत फूलता-फलता नहीं। इसी प्रकार चाहे ब्रह्मा के समान भी ज्ञानी गुरु मिलें, तो भी मूर्ख के हृदय में चेत (ज्ञान) नहीं होता॥ 


इसका तात्पर्य है कि चाहे अमृत की वर्षा हो फिर भी बैंत  के वृक्ष में फल और फूल नहीं लगते। ऐसे ही जो व्यक्ति प्रवचन ,कथाएं , संत वाणी एवं ईश्वर के सम्मुख ले जाने वाले पथ से संबंधित चर्चा सुनने के उपरांत भी इस प्रकार के मूर्ख लोगों पर  कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता  वह इनकी हंसी उड़ाने से भी पीछे नहीं रहते इस प्रकार के धूर्त व्यक्ति उन पंडितों , कथा वाचकों  के विरुद्ध अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करते हुए उनके कथनों को ढोंग बताते हैं पैसे ऐंठने का तरीका बताते हैं इस प्रकार के चपल अधर्मी व्यक्तियो को साक्षात ब्रह्मा भी ज्ञान देने इस पृथ्वी पर आ जाएं फिर भी वह नहीं समझेंगे । 
जीने की कला_ गोस्वामी जी के इस दोहे से शिक्षा मिलती है कि हमें अपने हृदय को  कोमल  एवं बुद्धि को तर्कहीन बनाना चहिए जिससे हम ईश्वर के संबंध में ज्ञान प्राप्त कर अपना जीवन सफल बना सकें ।

जय राम जी की
             पंडित प्रताप भानु शर्मा