खल परिहास होइ हित मोरा।
काक कहहिं कलकंठ कठोरा।।
हंसहि बक दादुर चातकही।
हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही
दुष्टों के हंसने से मेरा हित ही होगा मधुर कण्ठ वाली कोयल को कौए तो कठोर ही कहा करते हैं जैसे बगुले हंस पर और मेंढक पपीहे पर हँसते रहते हैं, वैसे ही मलिन मन वाले दुष्ट निर्मल वाणी पर हँसते हैं. इस तरह दुष्टों के मुख से जो दूषण निकलेंगे वह भी संतों के भूषण हो जाएंगे.
तात्पर्य है कि जब हमारे द्वारा कोई अच्छा कार्य किया जाता है तब दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति हंसी उड़ाते है क्योंकि वह नहीं चाहते कि कोई अच्छा कार्य करे जिससे उनका जमा हुआ साम्राज्य खतरे में पड़े जो कि उन्होने केवल झूठ के सहारे से ही स्थापित किया है । दुष्टों के हंसने से संत प्रवृत्ति के व्यक्तियों का केवल हित ही होता है वह जो भी दुष्टता करते हैं वह सज्जनता में परिवर्तित हो जाती है ।
जीने की कला= इन चौपाइयों के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि जब हमारे ऊपर कोई हंसता है हमारा मजाक उड़ाता है तब उसकी हंसी मजाक भी हमारे लिए वरदान बन जाती है जिससे हमारा कार्य निश्चित ही सफल होता है ।
जय रामजी की
पण्डित प्रताप भानु शर्मा
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