रविवार, 4 सितंबर 2022

(71) मूर्ख का ह्रदय

 

फूलइ फरइ न बेंत जदपि सुधा बरषहिं जलद।
मूरख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम ॥ 



भावार्थ

यद्यपि बादल अमृत जैसा जल बरसाते हैं तो भी बेत फूलता-फलता नहीं। इसी प्रकार चाहे ब्रह्मा के समान भी ज्ञानी गुरु मिलें, तो भी मूर्ख के हृदय में चेत (ज्ञान) नहीं होता॥ 


इसका तात्पर्य है कि चाहे अमृत की वर्षा हो फिर भी बैंत  के वृक्ष में फल और फूल नहीं लगते। ऐसे ही जो व्यक्ति प्रवचन ,कथाएं , संत वाणी एवं ईश्वर के सम्मुख ले जाने वाले पथ से संबंधित चर्चा सुनने के उपरांत भी इस प्रकार के मूर्ख लोगों पर  कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता  वह इनकी हंसी उड़ाने से भी पीछे नहीं रहते इस प्रकार के धूर्त व्यक्ति उन पंडितों , कथा वाचकों  के विरुद्ध अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करते हुए उनके कथनों को ढोंग बताते हैं पैसे ऐंठने का तरीका बताते हैं इस प्रकार के चपल अधर्मी व्यक्तियो को साक्षात ब्रह्मा भी ज्ञान देने इस पृथ्वी पर आ जाएं फिर भी वह नहीं समझेंगे । 
जीने की कला_ गोस्वामी जी के इस दोहे से शिक्षा मिलती है कि हमें अपने हृदय को  कोमल  एवं बुद्धि को तर्कहीन बनाना चहिए जिससे हम ईश्वर के संबंध में ज्ञान प्राप्त कर अपना जीवन सफल बना सकें ।

जय राम जी की
             पंडित प्रताप भानु शर्मा
 

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