मंगलवार, 8 जून 2021

(61) तप तें अगम न कछु संसारा ।


तपबल तें जग सुजई बिधाता ।
तपबल बिश्णु भए परित्राता ।
तपबल शंभु करहि संघारा ।
तप तें अगम न कछु संसारा ।

अर्थ - तपस्या की शक्ति से ही ब्रह्मा ने संसार की रचना की है और तपस्या की शक्ति से ही विष्णु इस संसार का पालन करते हैं । तपस्या द्वारा हीं शिव संसार का संहार करते हैं ।   तपस्या से कुछ भी प्राप्ति दुर्लभ नही है ।

 भावार्थ - इसका तात्पर्य है कि तपस्या का हमारे  जीवन में बहुत महत्व है | बिना तपस्या के कुछ भी प्राप्त करना संभव नहीं है | जिस प्रकार सोने को तपाने पर सोना निरखता है उसी प्रकार जीवन में तप के द्वारा ही निखार आता है | जो व्यक्ति कष्ट में भी हंसना जानता है उसी के जीवन की महत्ता बढ़ जाती है | तपस्या का अर्थ है किसी अभीष्ट कार्य को प्राप्त करने हेतु किया जाने बाला कठिनतम कार्य, जो कि किसी भी क्षेत्र में हो सकता है | विद्यार्थी जीवन हो या फिर अर्थोपार्जन का कार्य सभी क्षेत्र में वही सफल होता है जो किसी उद्देश्य को लेकर चलता है और उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए तपस्या अर्थात कठिन परिश्रम करता है |

जीवन जीने की कला - श्री रामचरितमानस की इस चौपाई से हमें सीख मिलती है कि किसी भी कार्य में सफलता के लिए तपस्या अर्थात कठोर मेहनत की आवश्यकता होती है अतः हमें किसी भी परिस्थिति में मेहनत से पीछे नहीं हटना चाहिए  ।  दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं जिसको  तपस्या द्वारा प्राप्त नही किया जा सकता है ।

   जय राम जी की

                         पंडित प्रताप भानु शर्मा