मंगलवार, 31 जुलाई 2018


(९) कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करें

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर । 

बसीकरन इक मंत्र है परिहरु बचन  कठोर   ।।



 अर्थात तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे बचन सब के लिए सुख फैलाते हैं।  किसी को वश में करने का यह एक मंत्र है।  इसका तात्पर्य है कि हमें कठोर वचनों  को त्यागकर अपनी वाणी में मधुरता ,विनम्रता, सहजता ,सम्मान  को समाहित करना चाहिए।   कठोर वचनों के शब्दों का घाव कभी नहीं भरते ।  झूठ बोलना , कटु बोलना, असंगत बात करना, निंदा करना , अहंकारयुक्त शब्दों को बोलना, यह सभी वाणी के दोष की श्रेणी में आते हैं , जिनसे मनुष्य संकट में पड़ता है।  अतः शब्दों का उपयोग सोच समझकर करना चाहिए। 
एक कवि  ने कहा  है कि -
" बोली तो अनमोल है जो तू चाहे बोल। 
 हिय तराजू तोल  कर मुख से बाहर खोल। "
अर्थात हमारे वचन अनमोल हैं , हमें शब्दों को बोलने से पूर्व अपने ह्रदय रुपी तराजू में तोलकर अपने मुँह से बोलना चाहिए। 
                 अतः हमेशा मीठा और उचित बोलिये।  स्वयं भी प्रसन्न होइए और दूसरों को भी प्रसन्न कीजिये।  

      
                                                                     

                                                                      जय राम जी की 

सोमवार, 30 जुलाई 2018


(८) स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते हैं 


सुर नर मुनि सब कै यह रीति।  स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति। 

   अर्थात देवता,मनुष्य,और मुनि सबकी यह रीति है  कि स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते हैं।  स्वार्थ का अर्थ है स्व + अर्थ =  स्वयं का भला करना।  स्वार्थ दो प्रकार का होता है  (१) किसी को लाभ पहुँचाते हुए स्वार्थ की पूर्ती करना (२) किसी को हानि पहुँचाते हुए स्वार्थ की पूर्ती करना।  इसमें प्रथम प्रकार का स्वार्थ उच्च कोटि का है जबकि दूसरे प्रकार का स्वार्थ निकृष्ट श्रेणी में आता है।  एक विद्वान का कथन है कि "  जो अन्य को हानि  पहुँचाकर अपना हित चाहता है वह मूर्ख अपने लिए दुःख के बीज बोता है। " स्वार्थी सब हैं , यह मनुष्य का गुण  है।   यदि स्वार्थ नहीं  होगा तो कर्म भी नहीँ होगा इससे  हम कर्महीन हो जायेंगे। हमें यही ध्यान रखना   है  कि हमारे स्वार्थ में किसी का अहित न होने पाए।   केवल वह परम पिता परमात्मा ही एक है  जो हमसे निस्वार्थ प्रेम करता है एवं   हम सब पर निःस्वार्थ भाव से अपनी कृपा बरसाता रहता है।  

                                                                                                                                              
                                                                                                       
                                                                                                   जय राम जी की                                            

रविवार, 29 जुलाई 2018


(७) प्यार केवल भगवान से करें 


 जननी जनक बंधु सुत दारा ।  तनु धनु भवन सुहृदु परिवारा। 
सब कर ममता ताग बटोरी  ।     मम पद मनहिं बाँधि बर डोरी।


 श्री राम चरित मानस के एक प्रसंग में प्रभु श्री राम  विभीषण को  समझाते हुए कहते हैं कि माता,पिता ,भाई, पुत्र, पति-पत्नी, शरीर,धन मकान,यार-दोस्त एवं कुटुम्बीजन,  इन सबके ममता  के धागे बटकर (गूँथ कर )  उस डोरी को मेरे चरणों में लगा दो।  अर्थात इन सबके प्रति कर्त्तव्य पालन करते हुए मन मेरे चरणों में लगा रहे।  इसका तात्पर्य है कि सभी पर ममता रखते हुए मोह को त्यागते हुए सभी  के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए प्यार केवल भगवान से करें , क्योंकि सच्चा प्यार केवल उसी के चरणों से ही प्राप्त होगा जिसमें किसी भी प्रकार के धोखे की निमिष मात्र भी आशंका नहीं रहेगी।  


                                                                                         जय राम जी की 



शनिवार, 28 जुलाई 2018


(६)  सुख- दुःख एक मानसिक अनुभूति है 


 सुमति कुमति सब के उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं। 
 जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।  जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना। 

  सुबुद्धि और क़ुबुद्धि सब के हृदय में रहती है. जहाँ सुबुद्धि है वहां सुख है जबकि जहाँ कुबुद्धि है वहां दुःख है।  इससे सिद्ध होता है की हमारी बुद्धि अर्थात हमारे विचार ही सुख अथवा दुःख के कारण हैं। यदि कोई व्यक्ति सुखी समृद्ध है तो इसका कारन व्यक्ति की शुभ भावना (अच्छे विचार) हैं इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति दुखी, चिंताओं से ग्रस्त , परेशान दिखाई देता है इसका कारण  उसके अनिष्ट विचार हैं।  
 अतः हमारे विचारों के आधार पर ही हम सुखी- दुखी होते हैं।  हमारे विचार हमारी भावना ही सुखी अथवा दुखी होने का अनुभव् कराते हैं।  हमारी शुद्ध भावना एवं उच्च विचारों के द्वारा  सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य को प्राप्त कर सकते है।  

                                                                    जय राम जी की 

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

(५) गुरु की महिमा  




बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि। 
महामोह  पुंज जासु बचन रवि कर निकर। 

    जीवन में गुरु का अत्यधिक महत्व है।  गुरु हमारे जीवन के लिए साक्षात्  ईश्वर ही है जो हमारे जीवन से मोह रुपी अंधकार को दूर कर प्रकाशमय कर देते हैं।  दुःख का कारण  मोह है और इसे दूर करने वाला ही गुरु है। 
जीवन में गुरु होना आवश्यक है , गुरु पथ प्रदर्शक है।    आजकल दम्भ पाखंड बहुत हो गया है और अब बढ़ता ही जा रहा है।  सीताजी के सामने रावण, राजा प्रतापभानु के सामने कपट मुनि और हनुमानजी के सामने कालनेमि आये तो वे उन्हें पहचान नहीं सके और उनके फेरे में आ गए। अतः  गुरु के रूप में  जिसमें आपकी श्रद्धा एवं विश्वास हो, उसे आप अपना गुरु मान  सकते हैं। 
          वास्तव में गुरु की महिमा अनंत है गुरु की महिमा भगवान् से भी अधिक है इसका पूरा वर्णन करना संभव ही नहीं है। 


                                                                          जय राम जी की 

                                                                          
  
  

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

(४) सत्संग का प्रभाव 

      
     
   बिनु  सत्संग बिबेक न होई।  राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
   सत्संगत मुद मंगल मूला।  सोइ फल सिधि सब साधन फूला। 

 सत्संग का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है।  ज्ञान और विवेक में अंतर है।  ज्ञान हमें पढ़ाई से प्राप्त     होता है जबकि विवेक हमें सत्संग से ही प्राप्त हो सकता है।  प्रभु कृपा के बिना सत्संग प्राप्त होना संभव नहीं है 
सत्संग की प्राप्ति ही फल है जबकि सभी साधन फूल हैं अर्थात सभी साधन के उपयोग के उपरांत भी व्यक्ति को परिणाम अनुकूल प्राप्त नहीं हो सकता परन्तु सत्संग से वह उस परिणाम को प्राप्त कर सकता है जो वह चाहता है।  अतः कहा गया की सत्संग आनंद और कल्याण की जड़ है।        


       सठ सुधरहि सतसंगति पाई।  पारस पारस    कुधात      सुहाई। 
      विधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गन अनुसरहीं। 

  सत्संगति से दुष्ट भी सुधर जाते हैं जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी स्वर्ण बन जाता है।  यदि कोई सज्जन व्यक्ति कुसंग में फँस भी जाता है तो वह अपने सहज सद्गुणों को नहीं छोड़ते अर्थात उन पर दुष्ट व्यक्तियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।  जिस प्रकार मणि, सर्प के मुंह में रहकर भी जहर ग्रहण नहीं करती वह तो सदैव प्रकाश ही उत्पन्न करती  है। 

       अतः  हमें सत्संग ही करना चाहिए।  


                                                                                                   जय राम जी की 
      

बुधवार, 25 जुलाई 2018




(३) बिना भय के प्रीत नहीं हो सकती


सभी सज्जनो को जय श्री राम 

          आज मैं रामचरित मानस के उस प्रसंग के बारे में  चर्चा करना चाहूंगा , जब प्रभु राम लंका पर चढ़ाई  करने  हेतु समुद्र तट पर बैठकर समुद्र से रास्ता देने के लिए  तीन दिन से बैठे हुए हैं परन्तु समुद्र विनय नहीं मानता। तब प्रभू क्रोध सहित बोलते हैं कि बिना भय के प्रीत नहीं हो सकती 
       विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति। 
       बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति। 
प्रेम के लिए  भय भी आवश्यक है , याचना की भी एक सीमा होती है , अतः प्रेम के साथ साथ भय होना आवश्यक है। 

                       
                                                                                     जय राम जी क़ी 

     
      

     

मंगलवार, 24 जुलाई 2018



(२)  भलाई का सद्गुण 


आज मैं रामचरित मानस की चौपाई पर प्रकाश डालना चाहूंगा 
      भलो भलाई पै लहइ लहइ  निचाइहि नीचु। 
     सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु। 
 अर्थात भला भलाई ही ग्रहण करता है नीच नीचता ही ग्रहण किये रहता है। अमृत की सराहना अमर करने में और विष की मारने में होती है।  
     हम सब में भलाई का गुण होना चाहिए जिससे हम अच्छे कार्य करते रहेंगे इससे हमारे मन में प्रसन्नता का भाव बना रहेगा और हम सदैव उत्साह पूर्वक कार्य सम्पन्न कर सकेंगे।  हमें भलाई पर ही रहना चाहिए भले ही कोई अन्य व्यक्ति इसके विपरीत आचरण वाला ही क्यों न हो।  भलाई अमृत के समान है और नीचता विष के सामान है।   जिस प्रकार अमृत, विष के प्रभाव को दूर कर देता है उसी प्रकार भलाई से विपरीत विचार वाले व्यक्तियों के विचार भी बदले जा सकते हैं।



                                                                                               जय राम जी की। 

              

सोमवार, 23 जुलाई 2018




    (१)  विधि का अर्थ


गुरुदेवाय नमः                                                श्री हनुमते नमः                                     श्री रामचन्द्राय नमः

गुरुदेव के पावन चरणों में प्रणाम करते हुए आज मैं श्री राम चरित मानस के माध्यम से इस जीवन को जीने की कला के बारे में प्रकाश डालने का प्रयत्न करूँगा।  जीवन सभी जीते हैं , परन्तु इस जीवन को जीने की कला का ज्ञान होना आवश्यक है जिससे हम अपने जीवन को स्वर्णिम बना सके एवं निराशा  को दूर कर अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। 
मैं सबसे पहले श्री राम चरित मानस की चौपाई का वर्णन करना चाहूंगा। 
हानि लाभ जीवन मरण , यश अपयश विधि हाथ 
यहाँ विधि का अर्थ Procedure है , अर्थात हानि,लाभ, जीवन ,मरण ,यश ,अपयश हमारे कार्य करने की विधि पर निर्भर है , हमारी विधि सही है तो हमें उसका परिणाम भी अनुकूल ही प्राप्त होगा।  अतः किसी भी कार्य को करने के पूर्व हमें उसकी विधि का ज्ञान होना आवश्यक है। हर कार्य को करने की एक विधि है जिसके बारे में आगे अवगत कराने का प्रयत्न करूँगा। 
                                                            
                                                                                    जय राम जी की