बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

(३६) नवनि नीच कै अति दुखदाई








 नवनि नीच कै अति दुखदाई।जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई।
       भयदायक खल कै प्रिय वानी ।जिमि अकाल के कुसुम भवानी।

अर्थात -नीच ब्यक्ति की नम्रता बहुत दुखदायी होती हैजैसे अंकुश धनुस साॅप और बिल्ली का झुकना।दुश्ट की मीठी बोली उसी तरह डरावनी होती है जैसे बिना ऋतु के फूल।

 इसका तात्पर्य है कि आज के सामाजिक परिवेश में हम इस प्रकार के दुष्ट स्वाभाव वाले व्यक्ति बहुतायत मिलते हैं जो हमारे सामने तो नम्रता दिखाते हैं और पीठ पीछे वार कर  देते हैं , यह केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।  अतः गोस्वामी जी द्वारा हमें इस प्रकार के व्यक्तियों से सावधान रहने के लिए चेतावनी दी गई है कि यदि इस प्रकार के दुष्ट व्यक्ति अचानक नम्र होकर हमसे मिलते हैं तो समझ जाना चाहिए कि यह हमें दुखदाई होने वाला है। यदि हम इनके  नम्रतापूर्ण व्यव्हार  को देखते हुए इनकी बातों में आकर कोई कार्य करते हैं तो यह हमारे लिए संकट उत्पन्न कर सकता है। 
जीने की कला -  इस चौपाई के माध्यम से हमें सीखने को मिलता है कि यदि दुष्ट व्यक्ति नम्र होकर व्यव्हार करता है तो हमें सावधान रहने की आवश्यकता है।  यह हमें संकट उत्पन्न कर सकता है। 

                                                                         जय राम जी की 



                                                                                             

शनिवार, 27 अक्तूबर 2018




(३५) एक स्थिति जब ज्ञानी और मूर्ख एक समान होते हैं। 


   काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान ।
    तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान ।


तुलसी दास जी कहते हैं कि  जब तक काम,क्रोध, घमंड और लालच व्यक्ति के मन में भरे हुए हैं तब तक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति के बीच में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं होता है , दोनों एक जैसे हो जाते हैं।  इसका तात्पर्य है कि जब किसी व्यक्ति के मन में काम, क्रोध, लालच, घमंड आ जाता है तब वह व्यक्ति कितना भी ज्ञानी क्यों न हो उसका ज्ञान नष्ट होकर मूर्ख की तरह हो जाता है अर्थात  उसकी बुद्धी को भ्रष्ट हो जाती है जिससे उसके द्वारा किये गए कार्य मूर्खतापूर्ण ही हो जाते हैं।  इसीलिए गोस्वामीजी द्वारा इस स्थिति को ज्ञानी और मूर्ख की एक समान स्थिति कहा गया है। 
जीने की कला -  इससे हमें सीखने को मिलता है कि हम काम,क्रोध,लालच और घमंड से दूर रहते हुए अपने कर्तव्यों के पालन में लगे रहना चाहिए। हमें प्रयास करते रहना चाहिए कि यह हम से दूर ही रहें। 


                                                                        जय राम जी की 


शनिवार, 20 अक्तूबर 2018


    (३४ ) पर हित सरिस धर्म नहिं भाई  



                   पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥                                               निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर।

भावार्थ- भाई! दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई नीचता (पाप) नहीं है।हमें हे तात! समस्त पुराणों एवं वेदों  का यह निर्णय  मैंने तुमसे कहा है, इस बात को पण्डित अर्थात ज्ञानी लोग जानते हैं॥

     इसका तात्पर्य है कि परहित अर्थात परोपकार (पर+उपकार) दूसरों के लिए समर्पित भावना से भलाई का कार्य करना ही सबसे बड़ा धर्म है।  परम पिता परमात्मा द्वारा रचित यह प्रकृति भी हमें यही सन्देश देती है।

        परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।

         परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थमिदं शरीरम् ॥

   परोपकार के लिए बृक्ष फल देते हैं, परोपकार के लिए नदी वहती है, परोपकार के लिए गाय दूध देती है , परोपकार के लिए ही हमें यह शरीर प्राप्त  हुआ  है। 

इसके विपरीत दूसरों को कष्ट पहुँचाने के समानं कोई पाप अर्थात नीच कार्य नहीं है।  हमें मन ,वचन, कर्म से दूसरों को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए क्योंकि इससे बड़ा अधर्म का कार्य दूसरा नहीं है। 

  अतः हमें  निःस्वार्थ भावना के साथ सदैव परोपकार के कार्य करते रहना चाहिए।


                                        जय राम जी की 



शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018


(३३) मूर्खों के सामने मौन रहने में ही भलाई है। 

                 

               लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन    

      अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन  ||

अर्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता |       

इसका तात्पर्य है कि जिस स्थान पर धूर्त एवं कपट पूर्ण व्यक्तियों  की ही बातों को सुना जाता है, ऐसे स्थान पर समझदार व्यक्तियों को चुप ही रहना उचित है।  क्योंकि जब इस प्रकार के व्यक्ति एकत्रित होकर व्यर्थ की बात करते हैं तो उनकी बातों पर समझदार व्यक्ति ध्यान न देकर मौन धारण कर लेता है क्योंकि वह समझ जाता है कि धूर्तो के बीच में अपनी ऊर्जा को नष्ट करने में कोई लाभ नहीं है।
    आज के सामजिक परिवेश में भी जब इस प्रकार के  मूर्ख  व्यक्तियों का बोलबाला देखने को मिले तो समझदारी इसी में है कि उसी प्रकार  चुप रहें जिस प्रकार मेंढ़कों के टर्राने पर कोयल चुप हो जाती है ।
     
                                                                     
       
                                             

                                                जय राम जी की 


रविवार, 7 अक्तूबर 2018

                           (३२) समय बड़ा बलवान 

       तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान ।

       भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण । 
अर्थात - तुलसीदास जी कहते हैं कि समय बलवान  है न कि मनुष्य महान है।  अर्थात मनुष्य बड़ा या छोटा नहीं होता वास्तव में यह उसका समय ही होता है जो बलवान होता है । जैसे एक समय था जब महान धनुर्धर अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष से महाभारत का युद्ध जीता था और एक ऐसा भी समय आया जब वही महान धनुर्धर अर्जुन भीलों के हाथों लुट गया और वह अपनी गोपियों का भीलों के आक्रमण से रक्षण भी नहीं कर पाया ।       

      समय का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है।  समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता , कभी अच्छा समय रहता है और कभी समय विपरीत हो जाता है। व्यक्ति अपने अच्छे समय को पहचान कर उसका लाभ उठाकर सफलता को प्राप्त कर लेता है जिससे व्यक्ति का जीवन स्वर्णिम बन जाता है। इसके विपरीत जब समय अच्छा नही होता तब जो भी कार्य किये जाते हैं उनका परिणाम भी अच्छा प्राप्त नहीं होता। ऐसे समय को काटना ही व्यक्ति के लिए बहुत आवश्यक है , अन्यथा यह समय व्यक्ति को ही काट लेता है, अर्थात व्यक्ति निराश होकर आत्महत्या तक कर सकता है। परम पिता परमेश्वर द्वारा हमें दी गईं शक्तियां किसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए प्राप्त हुई हैं , उन शक्तियों को समय रहते सदुपयोग करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए , अन्यथा हमारी स्थिति भी अर्जुन की तरह हो सकती है।        

                                                 जय राम जी की                               


मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018



(३१) टेढ़ जानि सब बंदइ काहू


टेढ़ जानि सब बंदइ काहू
वक्र चंद्रमहि ग्रसई न राहु

अर्थात - टेड़ा जानकर लोग किसी भी व्यक्ति की वंदना प्रार्थना करते हैं।  टेड़े चन्द्रमा को राहु भी नहीं ग्रसता है। 
   इसका तात्पर्य है कि टेड़े अर्थात जो व्यक्ति सरल स्वाभाव के नहीं होते उनसे सभी भयभीत रहते हैं एवं उनके अनुसार ही कार्य करते हैं , उनके द्वारा कही गई बातें भले ही गलत क्यों न हों उन्हें सही मानते हैं।    ऐसे व्यक्ति केवल अपने बारे में ही सोचते हैं, दूसरों को दुःख पहुँचाने के पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं।  ऐसे व्यक्तियों को लोग  हानि पहुँचाने से भी डरते हैं।
       इसके विपरीत सरल स्वभाव के व्यक्ति अधिकतर दुखी रहते हैं।  क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को '' ना '' बोलना नहीं आता , वे कभी किसी चीज के लिए ना नहीं बोलते, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी ही मेहनत क्यों न करनी पड़े।  ऐसे व्यक्ति किसी पर भी जल्दी विश्वास कर लेते हैं इससे उन्हें धोखा ही मिलता है फिर भी वह दूसरों को  धोखा देने की नहीं सोचते।  भले ही अन्य व्यक्ति उन्हें दुःख पहुँचाने का प्रयास करते रहें,   वे कभी किसी का दिल नही दुखाते।  वे अपनी खुशी से ज्यादा दूसरों की खुशी के बारे में सोचते हैं।  
         अब आपको निश्चित करना है कि आज के इस युग में आप कैसे सुखी रह सकते हैं। 

                                                        जय राम जी की 
                                                       (प्रताप भानु शर्मा)