शनिवार, 29 मई 2021

(60)तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।

 तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।   जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥

भावार्थ:-तब तक जीव की कुशल नहीं और न स्वप्न में भी उसके मन को शांति है, जब तक वह शोक के घर काम (विषय-कामना) को छोड़कर श्री रामजी को नहीं भजता॥

इसका तात्पर्य है कि जब तक हम अपने विषयों की कामना को मन से नहीं निकालेंगे तब तक न तो कुशल से रह सकते हैं और ना ही सपने में भी मन को शान्ति मिल सकती है यही कामनायें हमारे मन को बेचैन कर देती हैं | इन्हीं कामनाओं से व्यक्ति निराशा में डूबता चला जाता है यही शोक का कारण है |  यहाँ विषय की कामना से तात्पर्य हमारी इन्द्रियों की कामनाओं से है न कि हमारी आत्मा की कामना जिसे आत्म इच्छा कह सकते हैं जो केवल उस परम पिता परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है और हमें विषय की कामनाओं से मुक्ति दिलाकर मन में परम शान्ति का अनुभव कराती है |

जीने की कला- इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि हमें विषय कामना से दूर रहकर उस परम पिता परमात्मा का ध्यान करते रहना चाहिए जिससे हम अपनी आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर रहते हुए  अपने जीवन को सुखमय बना सकेंगे |

   जय राम जी की

                     पंडित प्रताप भानु शर्मा 

शुक्रवार, 21 मई 2021

(59)जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,

 

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,           सो नृप होहिं नरक अधिकारी !




अर्थ- जिस राज्य में उसकी प्रिय प्रजा दुःखी रहती है उस राज्य का राजा नरक गामी होता है | राज्य के कल्याणकारी तत्व का पैमाना जनता का सुख होना चाहिए न कि राजा के लोगों का उच्च स्वर उवाच |

इस चौपाई के माध्यम से गोस्वामीजी ने राजा की स्थिति के बारे में बताया है कि जिस राज्य में प्रजा अर्थात नागरिक दुःखी रहते हैं उस राज्य का राजा अवश्य ही नरक को प्राप्त करता है | कोई राज्य कैसा है इसका पैमाना उस राज्य की प्रजा के सुख को देखकर लगाया जा सकता है |राजा के लोग भले ही चिल्ला चिल्ला कर राजा के कार्यों का वर्णन करते रहें |

 प्रजा के हित में ही राजा का हित होता है यदि प्रजा दुःखी है तो राजा को उसके दुःख दूर करने के समस्त प्रयास करने चाहिए ना कि अपने सुख के लिए प्रजा का अहित होते देखना चाहिए|आचार्य चाणक्य ने भी इस सम्बन्ध में कहा है -
प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम् ।नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्
अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए । जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें है ।
आज के परिवेश में नेता केवल स्वयं के हित और अपनी पार्टी के वारे में ही सोचते हैं उन्हें जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है | अनकी सोच यही रहती है कि जल्दी से जल्दी धन कैसे कमाया जावे और अपनी पार्टी के लिए वोट कैसे एकत्रित किये जावें | इस प्रकार के नेता रुपी राजा को जीवन में कभी न कभी अवश्य ही दुःख रुपी नरक को प्राप्त करना ही पड़ता है |
जीने की कला- इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि किसी भी राष्ट्र की प्रजा को इस प्रकार के राजा को जो अपनी प्रजा के दुःख के समय साथ नहीं देकर अपने सुख में ही लिप्त रहता है ऐसे राजा का परिवर्तन आवश्यक है |

जय राम जी की
                        पंडित प्रताप भानु शर्मा 

बुधवार, 12 मई 2021

(58)होइहि सोइ जो राम रचि राखा

 

होइहि सोइ जो राम रचि राखा |

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥


भावार्थ -जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे।

  इसका तात्पर्य है कि उस परम पिता परमात्मा ने जो रचना करी है और इसके बारे में जो सोच रखा है, वही होगा | इस सम्बन्ध में कोई कितना ही तर्क क्यों ना करे सभी के तर्क बेकार हैं अर्थात तर्क करने से कोई लाभ नहीं है यह केवल तर्कों की शाखा बढ़ाना ही है

   अभी  हमारा देश कोरोना महामारी की दूसरी खतरनाक लहर से गुजर रहा है | सम्पूर्ण भारत में भय का वातावरण है | लॉकडाउन होने के कारण सभी अपने घर पर हैं और प्रतिदिन किसी परिजन, मित्रों को खोने की खबर मिल रही हैं |

   ऐसे भयपूर्ण वातावरण में श्री रामचरित मानस की यह चौपाई एक सम्बल प्रदान करती है कि उस परम पिता परमात्मा को जो करना है वही होगा इसके अतिरिक्त आपके सोचने से कुछ नहीं होगा | अतः हम इस परिस्थिति में अधिक न सोचते हुये केवल अपने कर्मो का पालन करते रहें और परम पिता  परमात्मा को उसके कर्मों का पालन करने दें | इसमें ही सभी का कल्याण है |

    जय राम जी की

                         पंडित प्रताप भानु शर्मा