‘जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप होहिं नरक अधिकारी !
अर्थ- जिस राज्य में उसकी प्रिय प्रजा दुःखी रहती है उस राज्य का राजा नरक गामी होता है | राज्य के कल्याणकारी तत्व का पैमाना जनता का सुख होना चाहिए न कि राजा के लोगों का उच्च स्वर उवाच |
इस चौपाई के माध्यम से गोस्वामीजी ने राजा की स्थिति के बारे में बताया है कि जिस राज्य में प्रजा अर्थात नागरिक दुःखी रहते हैं उस राज्य का राजा अवश्य ही नरक को प्राप्त करता है | कोई राज्य कैसा है इसका पैमाना उस राज्य की प्रजा के सुख को देखकर लगाया जा सकता है |राजा के लोग भले ही चिल्ला चिल्ला कर राजा के कार्यों का वर्णन करते रहें |
प्रजा के हित में ही राजा का हित होता है यदि प्रजा दुःखी है तो राजा को उसके दुःख दूर करने के समस्त प्रयास करने चाहिए ना कि अपने सुख के लिए प्रजा का अहित होते देखना चाहिए|आचार्य चाणक्य ने भी इस सम्बन्ध में कहा है -
प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम् ।नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्
अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए । जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें है ।
आज के परिवेश में नेता केवल स्वयं के हित और अपनी पार्टी के वारे में ही सोचते हैं उन्हें जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है | अनकी सोच यही रहती है कि जल्दी से जल्दी धन कैसे कमाया जावे और अपनी पार्टी के लिए वोट कैसे एकत्रित किये जावें | इस प्रकार के नेता रुपी राजा को जीवन में कभी न कभी अवश्य ही दुःख रुपी नरक को प्राप्त करना ही पड़ता है |
जीने की कला- इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि किसी भी राष्ट्र की प्रजा को इस प्रकार के राजा को जो अपनी प्रजा के दुःख के समय साथ नहीं देकर अपने सुख में ही लिप्त रहता है ऐसे राजा का परिवर्तन आवश्यक है |
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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