रविवार, 16 जुलाई 2023

(82)बिना विचारे कार्य नहीं करना चाहिए


अनुचित उचित काज कछु होई 
मुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।

अर्थ: किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं,  उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।

इसका तात्पर्य है कि किसी कार्य को करने के पूर्व उसके परिणाम के बारे में विचार करना चाहिए बिना विचार के किये  गये  कर्म को करने के बाद पछताना पड़ता है एवम ऐसे व्यक्ति को कोई भी  बुद्धिमान नहीं कहेंगे जबकि जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है उसे सभी बुद्धिमान कहते हैं और उसके  कार्य का परिणाम अच्छा ही निकलता है । 

जीने की कला= इस चौपाई के माध्यम से गोस्वामी जी के अनुसार जीवन जीने की कला प्राप्त होती है कि कोई भी कार्य करने के पूर्व विचार करना आवश्यक होता है ।

जय श्री राम जी की
     पंडित प्रताप भानु शर्मा

शुक्रवार, 5 मई 2023

(81)राम कृपा नासहि सब रोगा,

राम कृपा नासहि सब रोगा,
जौं एहि भाँति बनै संजोगा।
सदगुर बैद बचन बिस्वासा,
संजम यह न बिषय कै आसा।



कागभुशुण्डि जी ने गरुण जी को श्री रामचरित मानस में कई मानस रोग बताये तथा यह बताते हुए कहा कि किस प्रकार इन रोगों से बचा जा सकता है)

यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाय तो ये सब रोग नष्ट हो जाएंगे । इसके लिए सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो।विषयो की आशा न करे,यही संयम (परहेज) हो।
इसका तात्पर्य है कि  सद्गुरु रूपी वैद्य के वचनो पर विश्वास हो,उनमे अटूट श्रद्धा हो,तथा हर सम्भव उनके आदर्शो को जीवन में उतारने का दृढ निश्चय हो ,तभी इस प्रकार का संयोग बनता है फिर निश्चित रूप से सद्गुरु की कृपा से इन रोगों का नाश हो सकता है। सद्गुरु के वचनों पर विश्वास होना फिर उनके अनुसार कार्य करना आवश्यक है परंतु शर्त इतनी सी है कि विषय भोग का त्याग करना होगा अर्थात इसका परहेज आवश्यक है तभी ईश्वर की कृपा हम अपने रोगों का शमन कर पाएंगे।
जीने की कला= इससे हमें सीख मिलती है कि यदि हम सद्गुरु के कहे अनुसार कार्य करें और विषय अर्थात काम, क्रोध,लोभ, मोह एवं ईर्ष्या से दूर रहें तो  हम सदैव शारीरिक एवं मानसिक रोग से कभी पीड़ित नहीं होंगे ।,

जय श्री राम जी की
       पंडित प्रताप भानु शर्मा 


बुधवार, 26 अप्रैल 2023

(80) चौदह प्राणी जो कि जीते ही मुरदे के समान हैं।


रामचरितमानस

सदा रोगबस संतत क्रोधी।          बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी।
जीवत सव सम चौदह प्रानी

भावार्थ

नित्य का रोगी, निरंतर क्रोधयुक्त रहने वाला, भगवान विष्णु से विमुख, वेद और संतों का विरोधी, अपने ही शरीर का पोषण करने वाला, पराई निंदा करने वाला और पाप की खान (महान पापी) -  चौदह प्राणी जीते ही मुरदे के समान हैं।

  यह चौपाई श्री रामचरित मानस के लंका कांड से अंगद रावण संवाद  की है जिसमें उपरोक्तानुसार 14 प्रकार के व्यक्तियों को जीते जी मुर्दे के समान बताया गया है ।। आप स्वयं अपना आंकलन कर के देख सकते हैं कि आप जिंदा हैं या मुर्दा के समान । मृत व्यक्ति किसी का भला कर सकता है क्या ? अतः सबसे पहले स्वयं जीवित हों फिर अपने समाज और आस पास के व्यक्तियों को अपने सनातन धर्म के प्रति जीवित करके सच्चे सनातनी होने का परिचय देवें |

  जय राम जी की।

जय परशुराम  ।

                      पंडित प्रताप भानु शर्मा 


बुधवार, 12 अप्रैल 2023

(79)सेवक कर पद नयन से मुख सो साहिबु होइ।


 सेवक कर पद नयन से  मुख सो साहिबु होइ।
तुलसी प्रीति कि रीति सुनि सुकबि सराहहिं सोइ॥


भावार्थ == सेवक हाथ, पैर और नेत्रों के समान और स्वामी मुख के समान होना चाहिए।तुलसीदासजी कहते हैं कि सेवक-स्वामी की ऐसी प्रीति की रीति सुनकर सुकवि उसकी सराहना करते हैं॥

इसका तात्पर्य है कि स्वामी को मुख के समान एवं सेवक को हाथ, पैर और आंखो की तरह माना गया है   जिस प्रकार सेवक अपने हाथ पैर और नेत्रों का उपयोग करते हुए अपने स्वामी के लिए जेवीकोपर्जन हेतु खाद्य सामाग्री की व्यवस्था करता है और इन अंगो का उपयोग विपत्ति के समय स्वामी की रक्षा हेतु करता है। इसी प्रकार स्वामी अर्थात् मालिक  अपने सेवक के लिए  मुख के अनुसार कार्य करते हुए    सभी अंगों को पोषित करता है और उन्हें शक्तिशाली बनाता है। अर्थात सेवक का ध्यान रखना स्वामी का कर्तव्य है।
जीने की कला= इस दोहे में गोस्वामीजी ने स्वामी और सेवक के समन्वय को प्रस्तुत किया है । यदि स्वामी मुख की तरह और सेवक हाथ पैर और आंख की तरह होते हैं तभी उनमें समन्वय बना रह सकता है इससे शिक्षा लेकर हम स्वामी और सेवक का कर्तव्य सही प्रकार से पूर्ण कर सकते 
है ।

            जय राम जी की 
               पंडित प्रताप भानु शर्मा

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

(78)सेवक सठ नृप कृपन कुनारी।

       सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। 

       कपटी मित्र सूल सम चारी॥ 




भावार्थ:- मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र- ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले हैं। 

   
     इसका तात्पर्य है कि यदि सेवक मूर्ख है तो वह सदैव अपने स्वामी को कष्ट पहुंचाता रहेगा । यदि राजा कंजूस है तो उसकी प्रजा सदैव कष्ट में ही रहेगी क्योंकि वह प्रजा के सुख को ध्यान में रखते हुए कार्य नहीं करता जबकि धन बचाने की इच्छा रखता है। इसी प्रकार जिसकी पत्नी चरित्रहीन है वह सदैव पति के लिए कष्ट पहुंचाती रहेगी। यदि मित्र कपटी अर्थात कपट पूर्ण व्यवहार रखने वाला है तो वह भी अपने सच्चे मित्र के लिए पीड़ादाई होता है ।  इसके विपरीत व्यवहार करने वाले राजा, स्त्री, मित्र और सेवक को सभी चाहते हैं।


जीने की कला = इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि सेवक, राजा, स्त्री और मित्र के अवगुणों को ध्यान में रखते हुए  उनकी अपेक्षा करने में ही हमारी भलाई होती है।

                   जय राम जी की 
                     पंडित प्रताप भानु शर्मा 

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

(77) सेवा और समर्पण

 सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा॥ देखि भरत गति सुनि मृदु बानी। सब सेवक गन गरहिं गलानी॥

        






भावार्थ - मुझे उचित तो ऐसा है कि मैं सिर के बल चलकर जाऊँ। सेवक का धर्म सबसे कठिन होता है। भरतजी की दशा देखकर और कोमल वाणी सुनकर सब सेवकगण ग्लानि के मारे गले जा रहे हैं॥

इसका तात्पर्य है कि सेवक का धर्म सबसे कठोर है क्योंकि सेवक को अपने स्वामी के प्रति समर्पण का भाव  होने पर ही  सेवा करने की भावना उत्पन्न होती है । सेवा ,समर्पण का ही  प्रतिरूप है । सच्चा सेवक वह है जो केवल अपने स्वामी के प्रति समर्पित हो । स्वामी की इच्छा में ही उसकी इच्छा हो । उसको अपनी इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है अतः यह सर्वथा उचित है कि सेवक का धर्म सबसे कठोर है । सेवा के अंतर्गत लोक सेवा भी आती है जिसमें सभी नेतागण सम्मिलित हैं यदि वह भी भरत जी को अपना आदर्श बनाकर जन सेवा करते हैं  तब उनका नाम इस लोक में सदैव याद किया जाएगा  ।

जीने की कला= इस चौपाई के माध्यम से गोस्वामी जी ने सेवक के धर्म को कठोर बताया है परंतु हमारे जीवन में सेवा भाव होना अति आवश्यक है यही भाव मनुष्य होने को यथार्थ सिद्ध करता है।

जय रामजी की

पंडित प्रताप भानु शर्मा 



शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

(76) उन्नति में बाधक "मोह"

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥


अर्थ=सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। इस व्याधि से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। जैसे, काम, वात, लोभ, अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है, जो सदा छाती जलाता रहता है। ऐसे लोग जीवन में कुछ नहीं कर पाते। हमेशा आगे बढ़ने के लिए इन चीजों को त्यागना जरूर पड़ता है।

इसका तात्पर्य है कि जीवन में उन्नति का सबसे बड़ा अवरोधक मोह अर्थात अज्ञान ही है l इससे ही  कष्ट उत्पन्न होते हैं। गोस्वामी जी ने हमारे भीतर के शत्रु काम की तुलना वात विकार लोभ की तुलना कफ और क्रोध की तुलना पित्त से करते हुए कहा है कि व्यक्ति के मोह के कारण यह तीनों दोष प्रकट हो जाते हैं और उस व्यक्ति को सदैव कष्ट पहुंचाते रहते हैं ।

जीने की कला = इससे हमे जीने की कला सीखने को मिलती है कि हमें मोह का सर्वथा त्याग करना चाहिए क्योंकि यही हमारे जीवन की उन्नति में बाधक है साथ ही काम क्रोध लोभ भी मोह से ही उत्पन्न होते हैं अतः सबकी जड़ मोह रूपी अज्ञान ही है जिसके त्याग से ही हमारे जीवन में उन्नति होगी।


जय राम जी की ।

           पंडित प्रताप भानु शर्मा

बुधवार, 25 जनवरी 2023

(75) नौ प्रकार के व्यक्तियों की बात तुरंत माने




तब मारीच हृदयँ अनुमाना। नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।।

सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी। बैद बंदि कबि भानस गुनी।।

 

अर्थ - इस दोहे में गोस्वामी जी ने मारीच की सोच बताई है कि हमें किन लोगों की बातों को तुरंत मान लेना चाहिए। अन्यथा प्राणों का संकट खड़ा हो सकता है। इस दोहे के अनुसार शस्त्रधारी, हमारे राज जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान व्यक्ति, वैद्य, भाट, कवि और रसोइयां, इन लोगों की बातें तुरंत मान लेनी चाहिए। इनसे कभी विरोध नहीं करना चाहिए, अन्यथा हमारे प्राण संकट में आ सकते हैं।

    इसका तात्पर्य है कि निम्न नौ प्रकार के व्यक्तियों की बात को मान लेना ही हमारे लिए हितकर है अन्यथा हमे परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

1 जिसके पास शस्त्र है।

2 जो व्यक्ति हमारी गुप्त बातों को जानता है।

3 जो व्यक्ति समर्थ है हमारा स्वामी है अर्थात प्रमुख है ।

4 जो व्यक्ति मूर्ख है ।

5 जो व्यक्ति धनवान है ।

6 जो व्यक्ति चिकित्सक  (डाक्टर) है।

7 जो व्यक्ति भाट है अर्थात हमारी बढ़ाई करने वाला है।

8 जो व्यक्ति कवि है।

9 जो व्यक्ति हमारा रसोइया है ।

जीने की कला - इससे हमे जीने की कला सीखने मिलती है कि हमें उपरोक्त  से दुश्मनी नहीं करना चाहिए बल्कि इनकी बातों को मान लेना चाहिए इसी में हमारी भलाई है।


जय राम जी की ।

                  पंडित प्रताप भानु शर्मा