सेवक कर पद नयन से मुख सो साहिबु होइ। |
भावार्थ == सेवक हाथ, पैर और नेत्रों के समान और स्वामी मुख के समान होना चाहिए।तुलसीदासजी कहते हैं कि सेवक-स्वामी की ऐसी प्रीति की रीति सुनकर सुकवि उसकी सराहना करते हैं॥
इसका तात्पर्य है कि स्वामी को मुख के समान एवं सेवक को हाथ, पैर और आंखो की तरह माना गया है जिस प्रकार सेवक अपने हाथ पैर और नेत्रों का उपयोग करते हुए अपने स्वामी के लिए जेवीकोपर्जन हेतु खाद्य सामाग्री की व्यवस्था करता है और इन अंगो का उपयोग विपत्ति के समय स्वामी की रक्षा हेतु करता है। इसी प्रकार स्वामी अर्थात् मालिक अपने सेवक के लिए मुख के अनुसार कार्य करते हुए सभी अंगों को पोषित करता है और उन्हें शक्तिशाली बनाता है। अर्थात सेवक का ध्यान रखना स्वामी का कर्तव्य है।
जीने की कला= इस दोहे में गोस्वामीजी ने स्वामी और सेवक के समन्वय को प्रस्तुत किया है । यदि स्वामी मुख की तरह और सेवक हाथ पैर और आंख की तरह होते हैं तभी उनमें समन्वय बना रह सकता है इससे शिक्षा लेकर हम स्वामी और सेवक का कर्तव्य सही प्रकार से पूर्ण कर सकते है ।
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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