सेवक सठ नृप कृपन कुनारी।
कपटी मित्र सूल सम चारी॥
भावार्थ:- मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र- ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले हैं।
इसका तात्पर्य है कि यदि सेवक मूर्ख है तो वह सदैव अपने स्वामी को कष्ट पहुंचाता रहेगा । यदि राजा कंजूस है तो उसकी प्रजा सदैव कष्ट में ही रहेगी क्योंकि वह प्रजा के सुख को ध्यान में रखते हुए कार्य नहीं करता जबकि धन बचाने की इच्छा रखता है। इसी प्रकार जिसकी पत्नी चरित्रहीन है वह सदैव पति के लिए कष्ट पहुंचाती रहेगी। यदि मित्र कपटी अर्थात कपट पूर्ण व्यवहार रखने वाला है तो वह भी अपने सच्चे मित्र के लिए पीड़ादाई होता है । इसके विपरीत व्यवहार करने वाले राजा, स्त्री, मित्र और सेवक को सभी चाहते हैं।
जीने की कला = इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि सेवक, राजा, स्त्री और मित्र के अवगुणों को ध्यान में रखते हुए उनकी अपेक्षा करने में ही हमारी भलाई होती है।
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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