मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥
अर्थ=सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। इस व्याधि से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। जैसे, काम, वात, लोभ, अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है, जो सदा छाती जलाता रहता है। ऐसे लोग जीवन में कुछ नहीं कर पाते। हमेशा आगे बढ़ने के लिए इन चीजों को त्यागना जरूर पड़ता है।
इसका तात्पर्य है कि जीवन में उन्नति का सबसे बड़ा अवरोधक मोह अर्थात अज्ञान ही है l इससे ही कष्ट उत्पन्न होते हैं। गोस्वामी जी ने हमारे भीतर के शत्रु काम की तुलना वात विकार लोभ की तुलना कफ और क्रोध की तुलना पित्त से करते हुए कहा है कि व्यक्ति के मोह के कारण यह तीनों दोष प्रकट हो जाते हैं और उस व्यक्ति को सदैव कष्ट पहुंचाते रहते हैं ।
जीने की कला = इससे हमे जीने की कला सीखने को मिलती है कि हमें मोह का सर्वथा त्याग करना चाहिए क्योंकि यही हमारे जीवन की उन्नति में बाधक है साथ ही काम क्रोध लोभ भी मोह से ही उत्पन्न होते हैं अतः सबकी जड़ मोह रूपी अज्ञान ही है जिसके त्याग से ही हमारे जीवन में उन्नति होगी।
जय राम जी की ।
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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