(३३) मूर्खों के सामने मौन रहने में ही भलाई है।
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन ||
अर्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता |
इसका तात्पर्य है कि जिस स्थान पर धूर्त एवं कपट पूर्ण व्यक्तियों की ही बातों को सुना जाता है, ऐसे स्थान पर समझदार व्यक्तियों को चुप ही रहना उचित है। क्योंकि जब इस प्रकार के व्यक्ति एकत्रित होकर व्यर्थ की बात करते हैं तो उनकी बातों पर समझदार व्यक्ति ध्यान न देकर मौन धारण कर लेता है क्योंकि वह समझ जाता है कि धूर्तो के बीच में अपनी ऊर्जा को नष्ट करने में कोई लाभ नहीं है।
आज के सामजिक परिवेश में भी जब इस प्रकार के मूर्ख व्यक्तियों का बोलबाला देखने को मिले तो समझदारी इसी में है कि उसी प्रकार चुप रहें जिस प्रकार मेंढ़कों के टर्राने पर कोयल चुप हो जाती है ।
जय राम जी की
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