भलो भलाई पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु।
अर्थात भला भलाई ही ग्रहण करता है नीच नीचता ही ग्रहण किये रहता है। अमृत की सराहना अमर करने में और विष की मारने में होती है।
हम सब में भलाई का गुण होना चाहिए जिससे हम अच्छे कार्य करते रहेंगे इससे हमारे मन में प्रसन्नता का भाव बना रहेगा और हम सदैव उत्साह पूर्वक कार्य सम्पन्न कर सकेंगे। हमें भलाई पर ही रहना चाहिए भले ही कोई अन्य व्यक्ति इसके विपरीत आचरण वाला ही क्यों न हो। भलाई अमृत के समान है और नीचता विष के सामान है। जिस प्रकार अमृत, विष के प्रभाव को दूर कर देता है उसी प्रकार भलाई से विपरीत विचार वाले व्यक्तियों के विचार भी बदले जा सकते हैं।
जय राम जी की।
Keya bat hai .....
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