शनिवार, 28 जुलाई 2018


(६)  सुख- दुःख एक मानसिक अनुभूति है 


 सुमति कुमति सब के उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं। 
 जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।  जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना। 

  सुबुद्धि और क़ुबुद्धि सब के हृदय में रहती है. जहाँ सुबुद्धि है वहां सुख है जबकि जहाँ कुबुद्धि है वहां दुःख है।  इससे सिद्ध होता है की हमारी बुद्धि अर्थात हमारे विचार ही सुख अथवा दुःख के कारण हैं। यदि कोई व्यक्ति सुखी समृद्ध है तो इसका कारन व्यक्ति की शुभ भावना (अच्छे विचार) हैं इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति दुखी, चिंताओं से ग्रस्त , परेशान दिखाई देता है इसका कारण  उसके अनिष्ट विचार हैं।  
 अतः हमारे विचारों के आधार पर ही हम सुखी- दुखी होते हैं।  हमारे विचार हमारी भावना ही सुखी अथवा दुखी होने का अनुभव् कराते हैं।  हमारी शुद्ध भावना एवं उच्च विचारों के द्वारा  सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य को प्राप्त कर सकते है।  

                                                                    जय राम जी की 

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