(४) सत्संग का प्रभाव
बिनु सत्संग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
सत्संगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला।
सत्संग का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। ज्ञान और विवेक में अंतर है। ज्ञान हमें पढ़ाई से प्राप्त होता है जबकि विवेक हमें सत्संग से ही प्राप्त हो सकता है। प्रभु कृपा के बिना सत्संग प्राप्त होना संभव नहीं है
सत्संग की प्राप्ति ही फल है जबकि सभी साधन फूल हैं अर्थात सभी साधन के उपयोग के उपरांत भी व्यक्ति को परिणाम अनुकूल प्राप्त नहीं हो सकता परन्तु सत्संग से वह उस परिणाम को प्राप्त कर सकता है जो वह चाहता है। अतः कहा गया की सत्संग आनंद और कल्याण की जड़ है।
सठ सुधरहि सतसंगति पाई। पारस पारस कुधात सुहाई।
विधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गन अनुसरहीं।
सत्संगति से दुष्ट भी सुधर जाते हैं जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी स्वर्ण बन जाता है। यदि कोई सज्जन व्यक्ति कुसंग में फँस भी जाता है तो वह अपने सहज सद्गुणों को नहीं छोड़ते अर्थात उन पर दुष्ट व्यक्तियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जिस प्रकार मणि, सर्प के मुंह में रहकर भी जहर ग्रहण नहीं करती वह तो सदैव प्रकाश ही उत्पन्न करती है।
अतः हमें सत्संग ही करना चाहिए।
जय राम जी की
Keya bat hai ... sir
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