बुधवार, 25 जुलाई 2018




(३) बिना भय के प्रीत नहीं हो सकती


सभी सज्जनो को जय श्री राम 

          आज मैं रामचरित मानस के उस प्रसंग के बारे में  चर्चा करना चाहूंगा , जब प्रभु राम लंका पर चढ़ाई  करने  हेतु समुद्र तट पर बैठकर समुद्र से रास्ता देने के लिए  तीन दिन से बैठे हुए हैं परन्तु समुद्र विनय नहीं मानता। तब प्रभू क्रोध सहित बोलते हैं कि बिना भय के प्रीत नहीं हो सकती 
       विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति। 
       बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति। 
प्रेम के लिए  भय भी आवश्यक है , याचना की भी एक सीमा होती है , अतः प्रेम के साथ साथ भय होना आवश्यक है। 

                       
                                                                                     जय राम जी क़ी 

     
      

     

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