सोमवार, 15 अगस्त 2022

(67)कोउ नृप होउ हमहिं का हानि

 कोउ नृप होउ हमहिं का हानि ।

चेरी छाडि अब होब की रानी ॥


अर्थ:- कोई भी राजा हो जाये-हमारी क्या हानि है ? मैं अभी दासी हूँ तो नए राजा के बनने से दासी से क्या भला रानी बन जाऊंगी !

इसका तात्पर्य है कि कुछ व्यक्तियों की सोच रहती है कि राजा कोई भी हो इससे हमें क्या अंतर पड़ता है हम जैसे हैं वैसे रहेंगे इससे हमारी जीवन शैली नही बदलने वाली है । इस प्रकार की तुच्छ मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति ही इस राष्ट्र के लिए हानि पहुंचाने के लिए उत्तरदायी हैं । राजा जैसा होता है प्रजा भी वैसी ही होती है  यथा राजा तथा प्रजा । राजा की सोच से ही हमारा राष्ट्र अकल्पनीय उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है   अतः राजा चुनते समय सावधान रहने की आवश्यकता है न कि इस प्रकार की सोच के साथ किसी को भी राज्य सौंप कर होने वाले परिणामों को देखना ।

जीने की कला = यह उस मानसिकता का परिचायक सूत्र वाक्य है जहाँ व्यक्ति को तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक आंच उस तक नहीं आ जाये । जब बात खुद पर आती है फिर विरोध करने की हिम्मत नहीं रह जाती..! अतः किसी भी कार्य में स्वयं की सहभागिता निश्चित करना आवश्यक है भले ही वह कार्य आपको प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न करे।

आजादी के ७५ वर्ष आज पूर्ण हुए हैं जिसे हम अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं । आज हम सब शपथ ग्रहण करें कि हम अपने देश के लिए ऐसे सभी कार्य करेंगे जो देश हित में हों । स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं । जय हिंद जय भारत ।

       जय राम जी की    ।

        पंडित प्रताप भानु शर्मा

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