सुख संपति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बडाई।
नित नूतन सब बाढत जाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई
अर्थ
सुख धन संपत्ति संतान सेना मददगार विजय प्रताप बुद्धि शक्ति और प्रशंसा जैसे जैसे नित्य बढते हैं- वैसे वैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढता है।
इसका तात्पर्य है कि जब कोई व्यक्ति सुखी है तो वह ओर सुख की लालसा रखता है । इसी प्रकार जब व्यक्ति के पास धन, संपत्ति होने पर लोभ बढ़ता जाता है फिर वह ओर अधिक धन संपत्ति प्राप्त करने की सोचता है इसी प्रकार संतान, सेना, मददगार, विजय, प्रताप, बुद्धि, शक्ति और प्रशंसा जैसे जैसे बढ़ते हैं वैसे ही ओर अधिक प्राप्त करने का लोभ बढ़ता चला जाता है परंतु संतुष्ट नहीं होने पर सदैव दुखी ही बना रहता है ।
जीने की कला :==गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई से हमें सीख मिलती है कि, हमें कभी लोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि लोभ करने वाले कभी संतुष्ट नहीं होते अर्थात उनकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती।
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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