- काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच। बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।।
श्रीरामचरितमानस में काकभुशुण्डिजी कहते हैं : हे गरुड़जी! चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है वैसे ही नयी-नयी नीचता करने वाले को तुरन्त डाँट देना चाहिये, विनय करने से वह नहीं समझेगा |
इसका तात्पर्य है कि आज के परिवेश में हम कुछ इस प्रकार के व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं जो निकृष्ट व्यवहार करते है उनके द्वारा प्रथम बार निकृष्ट व्यवहार किए जाने पर तत्क्षण उन्हें डांट देना चाहिए जिससे वह पुनः इस प्रकार का व्यवहार न कर सके इसी में ही हमारी भलाई है क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति प्रेम की भाषा नहीं समझेंगे उन्हें डांटना आवश्यक है |
जीने की कला= इससे हमें सीख मिलती है कि हमें इस प्रकार के व्यक्ति के साथ व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक है अन्यथा हम आगे परेशानी में पड़ सकते हैं |
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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