नयन दोस जा कहॅ जब होइ, पीत बरन ससि कहुॅ कह सोई।
जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा, सो कह पच्छिम उपउ दिनेसा ।।
अर्थ तुलसीदासजी कहते हैं कि जब किसी के आँख में दोष होता है तो उसे चाँद पीले रंग का दिखाई देता है और जब पक्षी के राजा को दिशाओं का भ्रम हो जाता है तो उसे सूर्य पश्चिम में उदय होता हुआ दिखाई देता हैं।
इसका तात्पर्य है कि जब किसी व्यक्ति में दोष होता है तब उसे दोष ही नजर आते हैं अर्थात जो दिखाई देता है वह होता नही है जिस प्रकार दृष्टि दोष होने पर चंद्रमा का रंग पीला दिखाई देता है इसी प्रकार जब पक्षी राज गरूड उड़ते उड़ते दिशा से भटक जाता है तो उसे सूर्य पूर्व की जगह पश्चिम से उदय होता दिखाई देता है । अतः किसी के दोष देखना और उसे दोषी बनाना सर्वथा अनुचित होता है क्योंकि दोष हम में ही होते है जिससे हमारे सामने वाला निर्दोष होते हुए भी दोषी प्रतीत होता है ।
जीने की कला= इस दोहे के माध्यम से गोस्वामी जी हमे सीख देना चाहते हैं कि जब हम किसी के दोष देखते हैं तब वास्तव में दोष उसमे नहीं हमारी दृष्टि में ही होता है । अतः हमें किसी को दोषपूर्ण दृष्टि से नही देखना चाहिए ।
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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