शुक्रवार, 8 मार्च 2019





   (41) मनि मानिक मुकुता छबि जैसी . अहि गिरी गज सर सोह  तैसी                                
          नृप किरीट तरुनी तनु पाई . लहहीं सकल संग सोभा अधिकाई ...


अर्थ मणिमानिक और मोती जैसी सुन्दर छवि है मगर सांप , पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी सोभा नहीं पाते हैं ...राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीरपर ही ये अधिक शोभा प्राप्त करते हैं ..




       तुलसी दास जी के अनुसार मणि सांप पर माणिक पर्वत पर एवं मोती हाथी पर शोभित नहीं होते जबकी इनकी शोभा राजा के मुकुट एवं नवयुवती के शरीर पर ही होती है।  अर्थात किसी भी शोभयमान बस्तु की शोभा उसके मूल स्थान पर न होकर अन्यत्र ही हो सकती है।  इसका तात्पर्य है कि हमारे सद्गुण की शोभा हमारे परिवेश के बाहर ही शोभायमान हो सकते हैं।  अतः हमें अपने गुणों को प्रकट करने के लिए उचित माध्यम एवं परिवेश की आवश्यकता है। 
                                 
                                                                     जय राम जी  की  


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