तुलसी दास जी के अनुसार मणि सांप पर माणिक पर्वत पर एवं मोती हाथी पर शोभित नहीं होते जबकी इनकी शोभा राजा के मुकुट एवं नवयुवती के शरीर पर ही होती है। अर्थात किसी भी शोभयमान बस्तु की शोभा उसके मूल स्थान पर न होकर अन्यत्र ही हो सकती है। इसका तात्पर्य है कि हमारे सद्गुण की शोभा हमारे परिवेश के बाहर ही शोभायमान हो सकते हैं। अतः हमें अपने गुणों को प्रकट करने के लिए उचित माध्यम एवं परिवेश की आवश्यकता है।
जय राम जी की
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