यह मंत्र श्री रामचरित मानस के बालकांड से लिया गया है. इसका तात्पर्य है कि नदियां बहती हुई सागर की ओर ही जाती हैं, चाहे उनके मन में उधर जाने की कामना हो या नहीं. ठीक उसी तरह, सुख-संपत्ति भी बिना चाहे ही धर्मशील और विचारवान लोगों के पास चली आती हैं.
जीने की कला = इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि जब हम अपने धर्म का अनुसरण करते हुए किसी भी कार्य को सोच विचार कर करेंगे तो हमें निश्चित ही धन एवं सफलता प्राप्त होगी ।
जय राम जी की
दशहरे की शुभकामनाएं ।
पंडित प्रताप भानु शर्मा