तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम। जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥
भावार्थ:-तब तक जीव की कुशल नहीं और न स्वप्न में भी उसके मन को शांति है, जब तक वह शोक के घर काम (विषय-कामना) को छोड़कर श्री रामजी को नहीं भजता॥
इसका तात्पर्य है कि जब तक हम अपने विषयों की कामना को मन से नहीं निकालेंगे तब तक न तो कुशल से रह सकते हैं और ना ही सपने में भी मन को शान्ति मिल सकती है यही कामनायें हमारे मन को बेचैन कर देती हैं | इन्हीं कामनाओं से व्यक्ति निराशा में डूबता चला जाता है यही शोक का कारण है | यहाँ विषय की कामना से तात्पर्य हमारी इन्द्रियों की कामनाओं से है न कि हमारी आत्मा की कामना जिसे आत्म इच्छा कह सकते हैं जो केवल उस परम पिता परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है और हमें विषय की कामनाओं से मुक्ति दिलाकर मन में परम शान्ति का अनुभव कराती है |
जीने की कला- इस चौपाई के माध्यम से हमें सीख मिलती है कि हमें विषय कामना से दूर रहकर उस परम पिता परमात्मा का ध्यान करते रहना चाहिए जिससे हम अपनी आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर रहते हुए अपने जीवन को सुखमय बना सकेंगे |
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा