मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ।लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ॥
भावार्थ:-जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ाकर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है, नहीं तो जगत में जन्म व्यर्थ ही है॥
इसका तात्पर्य है कि जो लोग माता, पिता, गुरु, स्वामी से प्राप्त शिक्षा को सदैव अपने स्मरण में रखते हैं एवम उसका पालन करते है, उनका ही जीवन सफल हो जाता है जबकि ऐसा न होने पर जीवन व्यर्थ हो जाता है । माता पिता को प्रथम गुरु माना गया है जो कि अपनी संतान को बचपन से ही शिक्षा देकर जीवन में जीने का ज्ञान प्रदान करते है इसके बाद गुरु आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने का कार्य करते हैं साथ ही स्वामी अर्थात आपकी अंतरात्मा जो कि सदैव सही बात ही विचार के माध्यम से प्रकट करती है जिसे हम परमात्मा की आवाज मान सकते हैं जो कि जगत के स्वामी है । अतः इनकी शिक्षा को स्वाभाविक ही मान कर पालन करना चाहिए ।
जीने की कला = गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई से सीख मिलती है कि हम सब को माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा का अवश्य ही पालन करना चाहिए इसी में हमारी भलाई है ।
जय राम जी की ।
पंडित प्रताप भानु शर्मा