(९) कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करें
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरु बचन कठोर ।।
अर्थात तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे बचन सब के लिए सुख फैलाते हैं। किसी को वश में करने का यह एक मंत्र है। इसका तात्पर्य है कि हमें कठोर वचनों को त्यागकर अपनी वाणी में मधुरता ,विनम्रता, सहजता ,सम्मान को समाहित करना चाहिए। कठोर वचनों के शब्दों का घाव कभी नहीं भरते । झूठ बोलना , कटु बोलना, असंगत बात करना, निंदा करना , अहंकारयुक्त शब्दों को बोलना, यह सभी वाणी के दोष की श्रेणी में आते हैं , जिनसे मनुष्य संकट में पड़ता है। अतः शब्दों का उपयोग सोच समझकर करना चाहिए।
एक कवि ने कहा है कि -
" बोली तो अनमोल है जो तू चाहे बोल।
हिय तराजू तोल कर मुख से बाहर खोल। "
अर्थात हमारे वचन अनमोल हैं , हमें शब्दों को बोलने से पूर्व अपने ह्रदय रुपी तराजू में तोलकर अपने मुँह से बोलना चाहिए।
अतः हमेशा मीठा और उचित बोलिये। स्वयं भी प्रसन्न होइए और दूसरों को भी प्रसन्न कीजिये।