बुधवार, 5 अक्टूबर 2022
रविवार, 25 सितंबर 2022
(73)खल परिहास होइ हित मोरा।
खल परिहास होइ हित मोरा।
काक कहहिं कलकंठ कठोरा।।
हंसहि बक दादुर चातकही।
हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही
दुष्टों के हंसने से मेरा हित ही होगा मधुर कण्ठ वाली कोयल को कौए तो कठोर ही कहा करते हैं जैसे बगुले हंस पर और मेंढक पपीहे पर हँसते रहते हैं, वैसे ही मलिन मन वाले दुष्ट निर्मल वाणी पर हँसते हैं. इस तरह दुष्टों के मुख से जो दूषण निकलेंगे वह भी संतों के भूषण हो जाएंगे.
गुरुवार, 8 सितंबर 2022
(72)माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा का पालन ।
मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ।
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ॥
भावार्थ:-जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ाकर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है, नहीं तो जगत में जन्म व्यर्थ ही है॥
इसका तात्पर्य है कि जो लोग माता, पिता, गुरु, स्वामी से प्राप्त शिक्षा को सदैव अपने स्मरण में रखते हैं एवम उसका पालन करते है, उनका ही जीवन सफल हो जाता है जबकि ऐसा न होने पर जीवन व्यर्थ हो जाता है । माता पिता को प्रथम गुरु माना गया है जो कि अपनी संतान को बचपन से ही शिक्षा देकर जीवन में जीने का ज्ञान प्रदान करते है इसके बाद गुरु आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने का कार्य करते हैं साथ ही स्वामी अर्थात आपकी अंतरात्मा जो कि सदैव सही बात ही विचार के माध्यम से प्रकट करती है जिसे हम परमात्मा की आवाज मान सकते हैं जो कि जगत के स्वामी है । अतः इनकी शिक्षा को स्वाभाविक ही मान कर पालन करना चाहिए ।
जीने की कला = गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई से सीख मिलती है कि हम सब को माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा का अवश्य ही पालन करना चाहिए इसी में हमारी भलाई है ।
जय राम जी की ।
पंडित प्रताप भानु शर्मा
रविवार, 4 सितंबर 2022
(71) मूर्ख का ह्रदय
- भावार्थ
यद्यपि बादल अमृत जैसा जल बरसाते हैं तो भी बेत फूलता-फलता नहीं। इसी प्रकार चाहे ब्रह्मा के समान भी ज्ञानी गुरु मिलें, तो भी मूर्ख के हृदय में चेत (ज्ञान) नहीं होता॥
रविवार, 28 अगस्त 2022
(70)मनुष्य के रूप में राक्षस कौन है
पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद।
ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ।।
अर्थ
वे दूसरों से द्रोह करते हैं और पराई स्त्री, पराए धन तथा पराई निंदा में आसक्त रहते हैं। वे पामर और पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही हैं॥
इसका तात्पर्य है कि आजके सामाजिक परिवेश में कुछ व्यक्ति इस प्रकार के देखने को मिलते हैं जो द्रोह करने में ही आनंदित होते है वह सदैव द्रोह करने का कारण ही खोजते रहते हैं । पराई स्त्री के प्रति आकर्षित रहते हैं । दूसरे के धन को प्राप्त करने की चेष्टा करते रहते है और सदैव दूसरे की निंदा में ही लगे रहते हैं इस प्रकार के अत्यधिक दुष्ट अधम व्यक्ति मनुष्य शरीर में रहते हुए भी राक्षस ही हैं
जीवन जीने की कला= इस दोहे के माध्यम से गोस्वामी जी ने राक्षस को परिभाषित किया है इससे हमें शिक्षा मिलती है कि जिन व्यक्तियों में इस प्रकार के दुर्गुण दिखाई देवें तो उन्हें दूर करते हुए एक अच्छा मनुष्य बनाकर उनके जीवन को सफल बनाना चाहिए । इसी में उनकी भलाई है । अच्छे मनुष्यों को इस प्रकार के व्यक्तियों को शिक्षा के माध्यम से उनके दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए जिससे समाज सुधार हो सके ।
जय राम जी की।
पंडित प्रताप भानु शर्मा
रविवार, 21 अगस्त 2022
(69) संत के गुण
संत असंतन्हि कै असि करनी।
जिमि कुठार चंदन आचरनी॥
काटइ परसु मलय सुनु भाई।
निज गुन देइ सुगंध बसाई॥
ताते सुर सीसन्ह चढ़त,
जग बल्लभ श्रीखंड।
अनल दाहि पीटत घनहिं,
परसु बदन यह दंड॥
अर्थ=संत और असंतों की करनी ऐसी है जैसे कुल्हाड़ी और चंदन का आचरण होता है। हे भाई! सुनो, कुल्हाड़ी चंदन को काटती है (क्योंकि उसका स्वभाव या काम ही वृक्षों को काटना है), किंतु चंदन अपने स्वभाववश अपना गुण देकर उसे (काटने वाली कुल्हाड़ी को) सुगंध से सुवासित कर देता है।
इसी गुण के कारण चंदन देवताओं के सिरों पर चढ़ता है और जगत् का प्रिय हो रहा है और कुल्हाड़ी के मुख को यह दंड मिलता है कि उसको आग में जलाकर फिर घन से पीटते है।
इन चौपाइयों में गोस्वामी जी ने संत स्वभाव के व्यक्ति की तुलना चंदन से और असंत की तुलना कुल्हाड़ी से करी है जिस प्रकार असंत व्यक्ति संत व्यक्ति को परेशान करने का प्रयास करता है तब संत स्वभाव व्यक्ति अपने स्वभाव वश असंत को भी महका देते हैं जबकि असंत व्यक्ति को स्वभाव अनुसार दंड मिलना निश्चित है ।
जीने की कला= श्री राम चरित मानस की इन चौपाइयों के माध्यम से सीख मिलती है कि हमें अपने निज संत स्वभाव में रहकर सभी को महकाते हुए असंत को भी संत बनाने का प्रयास करना चाहिए ।
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
बुधवार, 17 अगस्त 2022
(68) दूसरों को दोष न देवें ।
नयन दोस जा कहॅ जब होइ, पीत बरन ससि कहुॅ कह सोई।
जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा, सो कह पच्छिम उपउ दिनेसा ।।
अर्थ तुलसीदासजी कहते हैं कि जब किसी के आँख में दोष होता है तो उसे चाँद पीले रंग का दिखाई देता है और जब पक्षी के राजा को दिशाओं का भ्रम हो जाता है तो उसे सूर्य पश्चिम में उदय होता हुआ दिखाई देता हैं।
इसका तात्पर्य है कि जब किसी व्यक्ति में दोष होता है तब उसे दोष ही नजर आते हैं अर्थात जो दिखाई देता है वह होता नही है जिस प्रकार दृष्टि दोष होने पर चंद्रमा का रंग पीला दिखाई देता है इसी प्रकार जब पक्षी राज गरूड उड़ते उड़ते दिशा से भटक जाता है तो उसे सूर्य पूर्व की जगह पश्चिम से उदय होता दिखाई देता है । अतः किसी के दोष देखना और उसे दोषी बनाना सर्वथा अनुचित होता है क्योंकि दोष हम में ही होते है जिससे हमारे सामने वाला निर्दोष होते हुए भी दोषी प्रतीत होता है ।
जीने की कला= इस दोहे के माध्यम से गोस्वामी जी हमे सीख देना चाहते हैं कि जब हम किसी के दोष देखते हैं तब वास्तव में दोष उसमे नहीं हमारी दृष्टि में ही होता है । अतः हमें किसी को दोषपूर्ण दृष्टि से नही देखना चाहिए ।
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
सोमवार, 15 अगस्त 2022
(67)कोउ नृप होउ हमहिं का हानि
कोउ नृप होउ हमहिं का हानि ।
चेरी छाडि अब होब की रानी ॥
अर्थ:- कोई भी राजा हो जाये-हमारी क्या हानि है ? मैं अभी दासी हूँ तो नए राजा के बनने से दासी से क्या भला रानी बन जाऊंगी !
इसका तात्पर्य है कि कुछ व्यक्तियों की सोच रहती है कि राजा कोई भी हो इससे हमें क्या अंतर पड़ता है हम जैसे हैं वैसे रहेंगे इससे हमारी जीवन शैली नही बदलने वाली है । इस प्रकार की तुच्छ मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति ही इस राष्ट्र के लिए हानि पहुंचाने के लिए उत्तरदायी हैं । राजा जैसा होता है प्रजा भी वैसी ही होती है यथा राजा तथा प्रजा । राजा की सोच से ही हमारा राष्ट्र अकल्पनीय उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है अतः राजा चुनते समय सावधान रहने की आवश्यकता है न कि इस प्रकार की सोच के साथ किसी को भी राज्य सौंप कर होने वाले परिणामों को देखना ।
जीने की कला = यह उस मानसिकता का परिचायक सूत्र वाक्य है जहाँ व्यक्ति को तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक आंच उस तक नहीं आ जाये । जब बात खुद पर आती है फिर विरोध करने की हिम्मत नहीं रह जाती..! अतः किसी भी कार्य में स्वयं की सहभागिता निश्चित करना आवश्यक है भले ही वह कार्य आपको प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न करे।
आजादी के ७५ वर्ष आज पूर्ण हुए हैं जिसे हम अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं । आज हम सब शपथ ग्रहण करें कि हम अपने देश के लिए ऐसे सभी कार्य करेंगे जो देश हित में हों । स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं । जय हिंद जय भारत ।
जय राम जी की ।
पंडित प्रताप भानु शर्मा
गुरुवार, 11 अगस्त 2022
(66)दिखावे से दूर रहना चहिए
तनु गुन धन महिमा धरम,। तेहि बिनु जेहि अभियान। तुलसी जिअत बिडंबना, परिनामहु गत जान।।
मंगलवार, 9 अगस्त 2022
रविवार, 31 जुलाई 2022
(64) काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
श्रीरामचरितमानस में काकभुशुण्डिजी कहते हैं : हे गरुड़जी! चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है वैसे ही नयी-नयी नीचता करने वाले को तुरन्त डाँट देना चाहिये, विनय करने से वह नहीं समझेगा | इसका तात्पर्य है कि आज के परिवेश में हम कुछ इस प्रकार के व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं जो निकृष्ट व्यवहार करते है उनके द्वारा प्रथम बार निकृष्ट व्यवहार किए जाने पर तत्क्षण उन्हें डांट देना चाहिए जिससे वह पुनः इस प्रकार का व्यवहार न कर सके इसी में ही हमारी भलाई है क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति प्रेम की भाषा नहीं समझेंगे उन्हें डांटना आवश्यक है |जीने की कला= इससे हमें सीख मिलती है कि हमें इस प्रकार के व्यक्ति के साथ व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक है अन्यथा हम आगे परेशानी में पड़ सकते हैं |
जय राम जी की पंडित प्रताप भानु शर्मा
बुधवार, 13 जुलाई 2022
(63) गुरु की महिमा
भावार्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं, जो सुरुचि अर्थात सुंदर स्वाद , सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो संपूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥
भावार्थ:- वह चरण-रज शिव जी के शरीर पर सुशोभित निर्मल भभूति के समान है, जो कि परम कल्याणकारी और आनन्द को प्रदान करने वाली है। उस चरण-रज से मन रूपी दर्पण की मलीनता दूर हो जाती है और जिसके तिलक लगाने से प्रकृति के सभी गुण वश में हो जाते है।
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥
भावार्थ:- श्री गुरु जी के चरणों के नख प्रकाशित मणियों के समान है, जिनके स्मरण मात्र से ही हृदय में ज्ञान रुपी दिव्य प्रकाश उत्पन्न हो जाता है। उस प्रकाश से अज्ञान रूपी अन्धकार नष्ट हो जाता है, वह मनुष्य बड़े भाग्यशाली होते हैं जिनके हृदय में वह दिव्य प्रकाश प्रवेश कर जाता है।
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥