(२५) केवल गुणों को ही ग्रहण करें
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार । संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ |
भावार्थ- विधाता ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है, किन्तु संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं॥
इसका तात्पर्य है कि परम पिता परमेश्वर द्वारा गुण-दोष के साथ ही जड़ एवं चेतन (स्थिर एवं चलायमान) को सम्मिलित कर इस संसार की रचना की गयी है। अर्थात इस संसार में जो भी सजीव अथवा निर्जीव हैं सभी में गुण एवम दोष विद्यमान हैं। बुद्धिमान वही है जो दोषों पर ध्यान न देते हुए केवल गुण ही ग्रहण करता है। उदाहरण स्वरूप मोबाइल इंटरनेट का उपयोग आज के समय में बहुतायत हो रहा है , यह भी गुण एवं दोषों से परिपूर्ण है परन्तु इसके दोषों को दृष्टिगत न रखते हुए केवल गुणों का ही उपयोग किया जाये तो इसी में व्यक्ति की भलाई है।
अतः जिस प्रकार हंस को दूध पिलाने पर वह केवल दूध रूपी गुण को ग्रहण कर लेता है जबकि दोष रुपी जल को छोड़ देता है उसी प्रकार हमें भी दोषो को छोड़ते हुए केवल गुण ग्रहण करना चाहिए। इसी में हमारी भलाई है।
जय राम जी की
प्रताप भानु शर्मा
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