गुरुवार, 6 सितंबर 2018




(२२)  विधि विपरीत भलाई नाहीं

इहां संभु असमन अनुमाना, दच्छ सुता कहुं नहिं कल्याना
मोरेहु कहें न संसय जाहीं, विधि विपरीत भलाई नाहीं

भावार्थ - इधर शिवजी ने मन में ऐसा अनुमान किया कि दक्ष कन्या सती का कल्याण नहीं दिख रहा है क्योंकि जब मेरे समझाने से भी संदेह दूर नहीं होता तब ऐसा लगता है कि विधि  ही उनके  विपरीत हैं इसलिए सती का कुशल नहीं है।
    तात्पर्य है कि  जब विधि अर्थात कार्य करने की विधि विपरीत हो जाती है तो समझ जाना चाहिए कि भला (अच्छा) होने वाला नहीं है। यदि हम कोई कार्य सम्पन्न करते हैं जिसकी विधि उसकी प्रकृति के अनुसार पूर्व से ही निर्धारित है,  परन्तु हम उस कार्य को विधि अनुसार न करके विपरीत विधि से करते हैं तो उसका परिणाम अच्छा प्राप्त  हो ही नहीं सकता। इसके उदहारण हमारे जीवन में भी  देखे जा सकते हैं।  
    इस चौपाई से एक सन्देश यह भी प्राप्त होता है कि हमें संदेह करना चाहिए परन्तु संदेह होने पर विवेक से काम लेना चाहिए।  संदेह होने पर तुरंत निर्णय लेकर किया गया कार्य हमारे जीवन को नष्ट कर देता है।  अतः विवेक पूर्ण  निर्णय लेकर संदेह को दूर किया जा सकता है। 
          अतः विधि के विपरीत कार्य न कर , और संदेह होने पर विवेक से काम लेने पर आप इस चौपाई के  अर्थ को सार्थक करें। 



                                                 जय राम जी की 
                                           पं.  प्रताप भानु शर्मा 


                               
                                                     
            




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