महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर।।
भावार्थ:- मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूं, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥
इसका तात्पर्य है कि गुरु ही एक ऐसा व्यक्तित्व है जो हमारे अज्ञान रुपी अंधकार को नष्ट कर ज्ञान रुपी ज्योति को हमारे ह्रदय रुपी पटल पर प्रकाशमान करता है। गुरु हमारे जीवन में एक पथ प्रदर्शक के रूप में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
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