इसका तात्पर्य है कि मनुष्य में दया भाव होना अति आवशयक है , जिस व्यक्ति में दया नहीं होती वह एक मुर्दे के समान है। जिस व्यक्ति के मन में दयाभाव होता है वह व्यक्ति धर्म की ओर अग्रसर होता है जिससे वह जीवन में उत्तरोत्तर प्रगति कर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसके विपरीत अहंकार अर्थात घमंड समस्त पापों की जड़ है , जब व्यक्ति को अहंकार हो जाता है तब समझ लेना चाहिए कि इस अहंकार रुपी जड़ से पाप रुपी पौधा पनपने लगा है जो कि धीरे धीरे बढ़ा होकर उस व्यक्ति का विनाश करने वाला सिद्ध होता है।
अतः जब तक हमारे शरीर में प्राण हैं, हमें दया नहीं छोड़ना चाहिए। ईश्वर के द्वारा रचित इस संसार के समस्त प्राणियों पर दया भाव रखना ही धर्म का पालन है।
जय राम जी की
(प्रताप भानु शर्मा)
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