शुक्रवार, 28 सितंबर 2018


(२९) पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे ।।

अर्थात -दूसरों को उपदेश देना तो बहुत आसान है लेकिन स्वयं उन उपदेशों पर अमल करना कठिन। वर्तमान समय में उपदेशक अधिक है, अमलकर्ता नहीं। यदि व्यक्ति स्वयं आदर्शों का पालन करने लग जाए तो उसे उपदेश देनेकी ज़रूरत नहीं होगी।

    इसका तात्पर्य है कि दूसरों को उपदेश देना सरल है परन्तु उसके अनुसार पालन करना बहुत कठिन है। आज के सामाजिक परिवेश में हमें ऐसे व्यक्ति बहुत मिलते हैं जो हमें कुछ न कुछ सलाह देते रहते हैं चाहे वह बातचीत के रूप में हो अथवा भाषण के रूप में हो सकती है।  परन्तु उनके द्वारा कही गई बातों का प्रभाव तभी पड़ता है जब वे स्वयं अपने द्वारा कही गई बातों का अनुशरण करते हैं।  

   अतः कहा गया है कि दूसरों को सलाह देने के पूर्व स्वयं का आंकलन अवश्य करना चाहिए कि हम अपने द्वारा कही गई बातों का पालन करते हैं अथवा नहीं।  यदि व्यक्ति स्वयं अपने द्वारा कही गई आदर्शों की बात का पालन करता है तो उसे उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि उससे संलग्न सभी व्यक्ति उसके द्वारा कहने अथवा न कहने पर भी  आदर्शों का पालन करते रहेंगे। 


                                                जय राम जी की 
                                              (प्रताप भानु शर्मा )
  

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