(२३) मुखिया मुखु सो चाहिऐ
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |
इसका तात्पर्य है की मुखिया अर्थात किसी भी देश,प्रदेश,संस्थान,कार्यालय, परिवार इत्यादि का वह व्यक्ति जिस पर उसकी पूर्ण जिम्मेदारी है, उसको मुख अर्थात मुंह के समान होना चाहिए। जिस प्रकार केवल एक मुख के द्वारा हम खाना पीना करते हैं जो कि हमारे पूरे शरीर की क्रियाओं को संचालित करने हेतु आवश्यकतानुसार ऊर्जा प्रसारित करता है। यहाँ इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि मुख द्वारा विवेक के अनुसार हमारे शरीर के अंगो का पालन पोषण होता है। मुखिया के आधीन आने वाले सभी सदस्य उसके अंग होते हैं जिनका पालन पोषण एवं उनके हितों की रक्षा विवेक पूर्वक करना मुखिया का कार्य होना चाहिए। सभी पदार्थ खाद्य योग्य एवं सभी पेय पदार्थ पेय योग्य नहीं हो सकते। अतः मुखिया को इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है की वह योग्य पदार्थों का ही सेवन करे। जिससे उससे संलग्न सदस्य रुपी अंगों का समुचित विकास हो सके। इसी प्रकार मुखिया के द्वारा कमाया गया धन भी यदि योग्य है तो ही इससे सदस्यों के जीवन को आनंदमय बनाया जा सकता है।
अतः गोस्वामी जी द्वारा बताये गए मुखिया के गुण जिस मुखिया में होते हैं उससे संलग्न सभी सदस्यों की उत्तरोत्तर प्रगति को कोई नहीं रोक सकता।
जय राम जी की
(प्रताप भानु शर्मा )
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रविवार, 9 सितंबर 2018
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Amazing .. Thanks for motivation
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