(२७) तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते हैं. आप सबसे हँस कर मिलो और बोलो जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो.
इसका तात्पर्य है कि प्रभु के द्वारा रचित इस संसार में हर प्रकार के लोग रहते हैं अर्थात सभी लोग एक समान नहीं हैं , सभी के विचार , बुद्धि ,तर्कशक्ति एक समान नहीं होती। सभी की सोच अलग होती है , यह आवश्यक नहीं कि जैसा आप सोचते हैं , दूसरा भी उसी प्रकार की सोच रखता है। अतः हमें सभी लोगों से प्रसन्नता पूर्वक मिल कर हँसते बोलते रहना चाहिए। इस सम्बन्ध में गोस्वामी जी , एक उदहारण प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार नदी में लहरों को परास्त करती हुई नाव चलती है इसी प्रकार इस संसार रुपी सागर में विभिन्न नदी रूपी व्यक्ति मिलते हैं जिसमें नाव रुपी आपको व्यक्तियों से सामंजस्य स्थापित करते हुए इस संसार रुपी सागर को पार करना है।
अतः सभी विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ रहते हुए उनसे हँसकर मिल बोल कर इस जीवन को प्रसन्नता पूर्वक व्यतीत किया जा सकता है।
जय राम जी की
(प्रताप भानु शर्मा )
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते हैं. आप सबसे हँस कर मिलो और बोलो जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें