बुधवार, 29 अगस्त 2018


 (२०) न कोई ज्ञानी है न मूर्ख
  बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ। जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ॥

भावार्थ- तब महादेव ने हँसकर कहा - न कोई ज्ञानी है न मूर्ख। रघुनाथ जब जिसको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है॥ 

     इसका तात्पर्य है कि कोई भी मनुष्य न ज्ञानी है और न ही मूर्ख है, ज्ञानी व्यक्ति भी किसी समय में मूर्खता कर बैठते हैं जिससे उनका जीवन ही संकटग्रस्त हो जाता है।  जबकि मूर्ख व्यक्ति भी कभी इतना ज्ञानी हो जाता है  कि उचित निर्णय लेकर अपना जीवन सुखमय बना लेता है।  आज के परिवेश में भी इस प्रकार के व्यक्ति देखने को मिलते हैं जो  चतुर विद्वान व्यक्ति भी ऐसी भूल कर बैठता है जिससे उसे जीवन भर पछतावा होता है, वह स्वयं भी नहीं समझ पाता कि उससे इस प्रकार की मूर्खता पूर्ण कार्य कैसे हो गया।  इसी प्रकार कोई व्यक्ति मूर्ख समझना भी सही नहीं है, क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति कभी भी विद्वान के रूप में व्यवहार कर उचित निर्णय के उपरांत आनंदमय जीवन व्यतीत करते हैं।  इससे स्पष्ट होता है कि व्यक्ति के ज्ञानी  अथवा मूर्ख होने की स्थिति  सदैव एक समान नहीं रहती, वह किसी भी छण ज्ञानी अथवा मूर्ख की भांति व्यवहार कर सकता है, जो कि उसके कर्म अनुसार  ईश्वर के संचालन नियम के अंतर्गत परिवर्तन चलता रहता है। 

                 जय राम जी की

               पंडित प्रताप भानु शर्मा                             
                                                                                                                                                 जय राम जी की 
                                             पं  प्रताप भानु शर्मा 





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