(१५) अपनी पहचान अपने कर्म से होती है ।
सूर समर करनी करहिं न जनावहिं आपु।
बिध्यमान रन पाई रिपु कायर कथहि प्रतापु।।
अर्थात - शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का ही कार्य करते हैं , वे स्वयं कहकर अपने आपको नहीं जनाते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं।
इसका तात्पर्य है कि हमारे द्वारा किये गए कर्म ही हमारी पहचान बनाते हैं। इसके लिए हमें स्वयं कहने की आवश्यकता नहीं रहती कि हमने ऐसा काम किया है। हमारे द्वारा किये गए सत्कर्म ही हमारे जीवन में यश कीर्ति को अपने आप प्रकाशित कर देते हैं। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने मुँह से अपने यश का बखान करते हैं , वे स्वयं को शूरवीर समझते हैं परन्तु यथार्थ में वे कायर की श्रेणी में ही आते हैं।
अतः हमें सुकर्म करते रहना है , यही हमारी पहचान बनाएंगे।
जय राम जी की
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