(12) किसी की निंदा न करें
तुलसी जे कीरति चहहिं , पर की कीरति खोई।
तिनके मुंह मसि लागहैं , मिटिहि न मरिहै धोई।।
अर्थात तुलसी दासजी कहते हैं कि जो मनुष्य दूसरों की निंदा कर स्वयं की प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं वे स्वयं की प्रतिष्ठा खो देते हैं। गोस्वामी जी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति के मुंह पर ऐसी कालिख पुतेगी जो सभी प्रकार के प्रयासों के उपरांत भी नहीं मिटेगी।
आज के परिवेश में भी इस प्रकार के व्यक्ति देखे जाते हैं जो अपनी प्रतिष्ठा के लिए दूसरों की निंदा करते हैं एवं स्वयं गुणहीन होने पर भी अहंकार से भरे रहते हैं और अन्य को हेय दृष्टि से देखते हैं। परन्तु वे भूल जाते हैं कि इस प्रकार के कृत्य उनकी प्रतिष्ठा मेँ बृद्धि नहीं अपितु उनकी प्रतिष्ठा को सदैव के लिए समाप्त कर, इस प्रकार से अपमानित करते हैं कि वे चाहे कितने भी प्रयास कर लें उन्हें वह सम्मान पुनः प्राप्त नहीँ हो सकता।
अतः यदि हम अपनी प्रतिष्ठा, यश, को बनाये रखना चाहते हैं तो हमें निंदा करने एवं सुनने से बचना चाहिए।
जय राम जी की
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