शनिवार, 18 अगस्त 2018

        

     (१९)  ऊंच निवासु  नीच करतूति, देखि न सकहि  पराई विभूति 



    श्री रामचरित मानस में   देवताओं ने स्वार्थवश सरस्वतीजी से प्रार्थना कर श्री राम जी को राज तिलक न होकर  बनवास हेतु भेजने का प्रयत्न करने के लिए आग्रह किया।  माँ सरस्वती ने मंथरा के माध्यम से श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास करा दिया। देवताओं ने ऊंचे पद पर आसीन होने के उपरांत भी इस प्रकार का कार्य किया जो कि ठीक नहीं समझ आता, परन्तु इसके पीछे देवताओं का  उद्देश्य यही  था  कि  मनुष्य,ऋषि ,मुनि ,की रक्षा हो सके, एवं  अधर्म पर विजय प्राप्त कर धर्म स्थापित हो सके जो कि वनवास के उपरांत ही संभव था। 
   आज के सामाजिक परिवेश में  ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति भी इस प्रकार के कार्य करते हैं जो उनके पद के अनुरूप नहीं होते एवं वे भी अन्य व्यक्तियों की प्रसिद्धि से ईर्ष्या करते हैं।  परन्तु उन्हें इस प्रकार के कृत्य करने के पूर्व निज स्वार्थ को त्यागकर लोकहित तथा परोपकार  के बारे में विचार करना चाहिए  तभी यह चौपाई सार्थक सिद्ध होगी ।
                                    जय राम जी की  
                                   प्रताप भानु शर्मा 
   

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