शुक्रवार, 17 अगस्त 2018


(१८) अजेय रथ

         सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥ बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे  

शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं॥
      ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना  ॥
          दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥
 ईश्वर का भजन ही (उस रथ को चलाने वाला) चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है॥

     अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
     कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥

निर्मल (पापरहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), (अहिंसादि) यम और (शौचादि) नियम- ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है॥

         इसका तात्पर्य है कि जो मनुष्य  रामचरित मानस में बताये गए गुण रुपी रथ को धारण करता है, उसे कोई भी शत्रु पराजित नहीं कर सकता।  वह अजेय है। 
                 गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर शुभकामना। 
                                                                       जय राम जी की                                                   ( प्रताप भानु शर्मा )




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