(१०)सदैव नीतिगत बात ही करें।
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
अर्थ। : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है। इसका तात्पर्य है कि यदि भय अथवा लाभ की आशा से मंत्री, राजा को उचित सलाह नहीं देता तो राज का विनाश निश्चित है, इसी प्रकार चिकित्सक यदि रोगी व्यक्ति से उसकी बीमारी के बारे में सही नहीं बताता तो उसका विनाश निश्चित है, इसी प्रकार यदि गुरु , स्वयं के लाभ की आशा अथवा भय से प्रिय बोलकर गलत को भी सही बताते हैं तो समझना चाहिए की हमारा धर्मं नष्ट होने की कगार पर है। अतः इन तीनों के प्रिय वादन पर ध्यान देना आवश्यक है। आज के परिवेश में इन तीनों प्रकार के व्यक्तियों से हम इनकी प्रियवादिता पर संदेह करते हुए सत्यता को उजागर करने का प्रयत्न कर , होने वाली हानि से बच सकते हैं।
जय राम जी की
बहुत सुन्दर रामायण बचन
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