शनिवार, 11 अगस्त 2018




  (१६) सभी को अपने कर्म के अनुसार ही सुख अथवा दुःख प्राप्त होता है। 



   काहु न कोऊ सुख दुख कर दाता। 
  निज कृत करम भोग सबु भ्राता। 


अर्थात - कोई किसी को सुख दुःख का देने वाला नहीं है।  सब अपने ही किये हुए कर्मों का फल भोगते हैं। 
 इसका तात्पर्य है कि कोई भी किसी को सुख अथवा दुःख नहीं पहुंचा सकता है।  यह हमारा मानसिक भ्रम ही है , जो हम किसी को  दुःख पहुँचाने का कारण मानकर उससे द्वेषपूर्ण व्यवहार करते हैं अथवा सुख पहुँचाने के कारण उससे मोह करते हैं।  सुख-दुःख केवल हमारे द्वारा किये गए कर्मों पर ही निर्भर हैं।  यदि हमारे कर्म में पारदर्शिता है तो वे कर्म हमारे लिए सुख पहुँचाने वाले सिद्ध होंगे, जबकि जिन कर्मो में दुराव होता है वे कर्म सदैव दुःख देने वाले ही होते हैं। 
         अतः इस चौपाई के माध्यम से यही सन्देश प्राप्त होता है  कि यदि किसी से दुःख प्राप्त हो तो उसे दोषी मानकर उसके प्रति की जाने वाली कार्यवाही के पूर्व एक बार सोचना चाहिए कि वह स्वयं इसके लिए कितना जिम्मेदार है।  इस प्रकार उसके मन में आने वाली कटुता की भावना को कम किया जा सकता है एवं स्वयं में सुधार लाकर समाज को भी सुधारा जा सकता है। 

                                                                             जय राम जी की 
                                                                        पं. प्रताप भानु शर्मा 

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