परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा |
पर निंदा सम अघ न गरीसा |
अर्थ- वेदों में अहिंसा को परम धर्म माना गया है और पर निंदा के समान घोर पाप नहीं है |
श्री रामचरितमानस की इस चौपाई में गोस्वामी जी ने धर्म की परिभाषा बताई है जिसके अनुसार अहिंसा परम धर्म है और इसके विपरीत दूसरे की निंदा करना जो कि एक हिंसा का ही रूप है उसे भारी पाप माना गया है, क्योंकि पर निंदा शब्दों द्वारा की हुई हिंसा है | मन, वचन और काया से हिंसा का त्याग ही अहिंसा कहलाता है | महावीर स्वामी ने भी अहिंसा को परम धर्म मानते हुए " अहिंसा परमो धर्म: का सन्देश दिया |
श्रीमद भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा "अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ”
इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आती है तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्योंकि धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं। जैसे हम अहिंसा के पुजारी है लकिन अगर कोई हमारे परिवार को हानि पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसके लिए की गई हिंसा सबसे बड़ा धर्म हैं। वैसा ही हमारे राष्ट्र के लिए हैं।
जीने की कला - इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए | यदि हम निंदा करने से बचेंगे चाहे वह पीठ पीछे हो या सामने, तो हम व्यर्थ के विवाद और अकारण ही शत्रुता से बचे रहेंगे | इसके विपरीत निंदा करने वाले दूसरों के मन को कष्ट पंहुचाकर अकारण ही शत्रुता मोल लेते हैं और ऐसे व्यक्तियों का समाज में भी सम्मान नहीं होता |
जय राम जी की
पंडित प्रतापभानु शर्मा