शनिवार, 17 अप्रैल 2021

(52)समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाईं,

 

समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाईं,

 रबि पावक सुरसरि की नाईं



अर्थ - गोस्वामी जी कहते हैं कि जो समर्थ  है उनका हर काम सही उनका दोष नहीं माना जाता।जैसे सूर्य ,अग्नि और गंगा का दोष नहीं माना जाता

व्याख्या -इसका सीधा तात्पर्य है कि जो सामर्थ्य वान ,सशक्त है उनका हर काम सही है अर्थात उनके द्वारा गलत करने पर भी उनका दोष नहीं माना जाता।जैसे सूर्य ,अग्नि और गंगा का दोष नहीं माना जाता । परन्तु यहाँ गोस्वामी जी द्वारा जो भाव प्रकट किया गया है उसमें समर्थ (सम +अर्थ ) से तात्पर्य उनसे है जिन्होंने अपने कर्म को स्वार्थ से अलग कर लिया है, जिनके कर्म सभी के लिए समान हैं एवं निर्दोष हैं | जिसमे इस प्रकार के गुण हैं वही समर्थ कहलाने योग्य है और उसी के लिए गलत करने पर भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता |

जीवन जीने क़ी कला - इसके माध्यम से हमें सीख मिलती है कि यदि हम अपने द्वारा किये गए कर्मों को निःस्वार्थ भाव से कर सकते हैं तब ही समर्थ कहलाने योग्य हैं अन्यथा सभी असमर्थ हैं | समर्थ तो वह परम पिता परमात्मा ही है जिसके द्वारा किये गए सभी कर्मों को दोष व्याप्त नहीं हो सकता |

                जय राम जी की
                                      

                           पं• प्रताप भानु शर्मा 

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