सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना ।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ||
अर्थ- हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ परिणाम में विपत्ति (दुःख) ही रहती है ॥3॥
इसका तात्पर्य है कि अच्छी बुद्धि अर्थात अच्छे विचार और खोटी बुद्धि अर्थात ख़राब विचार सभी के मन में होते हैं परन्तु जिसके मन में अच्छे विचार होते हैं वह सही समय पर सही निर्णय लेकर अपना कार्य सिद्ध कर लेता है जिससे उसका जीवन समृद्ध हो जाता है | इसके विपरीत जिसकी बुद्धि खोटी अर्थात ख़राब विचारों बाली होती है वह अपने हित को अहित और शत्रु को मित्र मानने लगता है| निर्णय लेने में गलती करता है जिससे उसे हानि का सामना करना पड़ता है और उसका जीवन विपत्तियों से घिर जाता है |
जीवन जीने की कला -
इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अच्छे विचार रखना चाहिए जिससे हमारा मन निर्मल और तनावमुक्त रहेगा और हम किसी भी क्षेत्र में सफल रहेंगे जिससे आर्थिक रूप से भी समृद्ध बनेंगे
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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