तुलसी तृण जलकूल कौ, निर्बल निपट निकाज
कै राखै कै संग चलै, बाँह गहे की लाज
अर्थ -तुलसीदास जी ने इस दोहे में दूब, अर्थात घास के गुणों में मानवीयता का अभाष कराया है जैसे दूब अर्थात घास एक कमजोर और किसी काम में न आने वाली होते हुए भी जब संकटग्रस्त प्राणी उसे अपनी रक्षा के लिए पकड़ता है तो निर्बल दूब उसकी रक्षा करती है या टूटकर उसी के साथ चल देती है |
इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने दूब अर्थात घास की तुलना एक सच्चे मित्र से करी है | सच्चे मित्र का दायित्व है कि वह अपने मित्र को संकट के समय इसी प्रकार साथ दे जिस प्रकार एक कमजोर घास भी प्राण रक्षक सिद्ध होता है अथवा उसी के साथ अपने को भी मिटाकर चल देता है |
जीने की कला - इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी शरण में आये प्राणी को अपने बल का आंकलन नहीं करते हुए उसकी रक्षा हेतु पूर्ण प्रयास करना चाहिए | यही मानवीय गुणों की पहचान है और मानवता का सही परिचय है |
जय राम जी की
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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