तुलसी किएं कुंसग थिति, होहिं दाहिने बाम | कहि सुनि सुकुचिअ सूम खल, रत हरि संकंर नाम । बसि कुसंग चाह सुजनता, ताकी आस निरास । तीरथहू को नाम भो, गया मगह के पास ।।
अर्थात – गोस्वामी जी इन चौपाईयो के माध्यम से कहना चाहते हैं कि बुरे लोगों की संगती में रहने से अच्छे लोग भी बदनाम हो जाते हैं. वे अपनी मान प्रतिष्ठा खोकर छोटे हो जाते हैं. ठीक उसी तरह जैसे, किसी व्यक्ति का नाम भले हीं देवी-देवता के नाम पर रखा जाए, लेकिन बुरी संगती के कारण उन्हें वह मान-सम्मान नहीं मिलता है. जब कोई व्यक्ति बुरी संगती में रहने के बावजूद अपनी काम में सफलता पाना चाहता है और मान-सम्मान पाने की इच्छा करता है, तो उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं होती है. ठीक वैसे हीं जैसे मगध के पास होने के कारण विष्णुपद तीर्थ का नाम “गया” पड़ गया |
इसका तात्पर्य है कि हमें कुसंग अर्थात बुरे लोगों के साथ नहीं रहना चाहिए यह हमारे और हमारे परिवार के लिए घातक सिद्ध हो सकता है |
जय राम जी क़ी
पंडित प्रताप भानु शर्मा
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